वाक्य-ज्ञान अत्यन्त निपुन भव पार न पावै कोई।
निसि गृह मध्य दीप की बातन तम निवृत्त नहिं होई॥
जिस प्रकार रात के अंधेरे मेंं घर के मध्य में दीपक की बातें करने से अंधकार का नाश नहीं होता जब उसे जलाएंगे तो उजाला होगा उसी प्रकार वाक्य -ज्ञान मेंं अत्यन्त निपुण होने पर भी कोई संसार रूपी समुद्र से पार नहीं हो सकता।
प्रस्तुत है अमित्रजित् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 2 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
८५६ वां सार -संक्षेप
1 अपने शत्रुओं को जीतने वाला
षड्रिपुओं पर और अन्य विकारों पर विजय प्राप्त करने के लिए संसार की समस्याओं को सुलझाते हुए संसार में रहने का सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए इन सदाचार संप्रेषणों के सदाचारमय विचार हम सबके लिए अत्यन्त उपयोगी ऊर्जाप्रद और ग्राह्य हैं
आइये इन्हें ग्रहण करने के लिए चित्तशक्ति की अनुभूति के लिए आत्मबोध जाग्रत करने के लिए आनन्दार्णव में तैरने के लिए अध्यात्म की ओर प्रेरित होने के लिए मनुष्यत्व की अनुभूति के लिए और अपनी जिज्ञासाओं को शमित करने के लिए प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में
संकटों के उपस्थित होने पर पुरुषार्थियों को अपने अनेक महापुरुषों के आख्यान याद आते हैं स्वार्थी इससे भिन्न हैं
स्वार्थ भी जब परिष्कृत होते होते विस्तार लेता है तो परमार्थ बन जाता है जैसे स्नेह और प्रेम भक्ति बन जाते हैं
स्वार्थ जब बहुत सी साधनाओं से परिशुद्ध हो जाता है तो ओषधि होता है
ज्ञान के समुद्र तुलसीदास जी ने लोक कल्याण के लिए मानस की रचना की वो भी कहते हैं
कहँ रघुपति के चरित अपारा। कहँ मति मोरि निरत संसारा॥5॥
एक ओर श्री रघुनाथजी के अपार चरित्र और दूसरी ओर संसार में आसक्त मेरी बुद्धि
इस प्रकार का भाव जिनमें स्थायी रूप ले लेता है वह स्वार्थ को परमार्थ बना कर जीते हैं
संकट के समय अपने धैर्य की परीक्षा लेनी चाहिए
सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥
बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे॥3॥
विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः।
यशसि चाभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम्॥ -- भर्तृहरि, नीतिशतक
विपत्ति से बढ़कर अनुभव सिखाने वाला कोई विद्यालय आज तक नहीं खुला -- मुंशी प्रेमचन्द
शांत समुद्र में जहाज चलाने से कोई कुशल नाविक नहीं बनता -- एक अफ्रीकन कहावत
हमारे सामने बहुत सी समस्याएं जैसे घरेलू आर्थिक राजनैतिक आदि मुंह बाये खड़ी रहती हैं
इन समस्याओं का समाधान हम स्वयं कर सकें किसी दूसरे का मुंह न ताकना पड़े
इसके लिए अपना आत्मबोध जाग्रत होना चाहिए
आचार्य जी ने प्राचीन प्रश्नोत्तरी विधि का महत्त्व क्यों बताया सिद्धि की गुटिका क्या है आदि जानने के लिए सुनें