प्रस्तुत है अमितद्युति ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 3 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
८५७ वां सार -संक्षेप
1 असीम तेज या कांतियुक्त
इन सदाचार संप्रेषणों के सदाचारमय विचार हम सबके लिए अत्यन्त उपयोगी ऊर्जाप्रद और ग्राह्य हैं आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है
ये विचार संसार में रहने के लिए संसार की समस्याओं को सुलझाने के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं प्रदूषणमुक्त वातावरण के लिए सदाचार अत्यन्त आवश्यक है जीवन पद्धति में संशोधन करने के लिए आइये प्रवेश करें आज की वेला में
संसार सत्य मिथ्यात्व प्रदर्शन दर्शन का शिव संगम है
आकर्षण और विकर्षणमय यह नाट्यमंच जड़ जंगम है
नरदेह असार सारमय जीवन की जागृत परिभाषा है
संसार -सत्य की समझ तत्व संप्राप्ति यास² की आशा है
(2 = प्रयास )
संसार रूपी नाट्यमंच अद्भुत है यहां आकर्षण विकर्षण दोनों है सार है तो असार भी है मनुष्य के रूप में जन्म लेकर हम सत्य की, तत्त्व की खोज में लगे रहते हैं
हमारा जन्म जिस देश में हुआ है जिस आर्ष परम्परा के हम उत्तराधिकारी हैं वह अद्भुत है और ईश्वर की महती कृपा है
जीवन को आनन्दपूर्वक व्यतीत करने के उद्देश्य से हमारे यहां पुरुषार्थ चतुष्टय (धर्म अर्थ काम मोक्ष )की परिकल्पना की गई है
धर्म सर्वप्रथम और मोक्ष अन्तिम यूं ही नहीं है इसी तरह के वैशिष्ट्य के कारण सनातन धर्म महत्त्वपूर्ण हो जाता है
तन्त्र विद्या संसार को समझने की और संसार में व्यवस्थित रूप से रहने की एक विधा है
आचार्य जी ने शिवप्रणीत ३५ प्रकाशों वाले मेरुतन्त्रम्
(एक प्रकाशक :चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन वाराणसी)
ग्रंथ की चर्चा की जिसमें शिव पार्वती संवाद है
इस ग्रंथ में हिन्दू शब्द का प्रयोग हुआ है
हिन्दूधर्मप्रलोप्तारो जायन्ते चक्रवर्तिन:।।
हीनं दूशयत्येव हिन्दुरित्युच्यते प्रिये।
पूर्वाम्नाये नवशतां षडशीति: प्रकीर्तिता:।।[1]
उपर्युक्त सन्दर्भ के अनुसार 'हिन्दू' शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार है
'हीनं दूषयति स हिन्दू'
अर्थात् जो हीन को दूषित समझता है वह हिन्दू है।
कहने का तात्पर्य है जो नीचता का परित्याग करता है वह हिन्दू है
दुष्ट और कुछ कहते हैं इसलिए हमें उनके सुर में सुर नहीं मिलाना है और भावी पीढ़ी को भी सचेत करना है
प्रवाहपतित नहीं होना है
हमें जीवित जाग्रत रहना है
जीवन जागरण है संयम साधना है सत्व तत्त्व की खोज का अद्भुत प्रयास है
शरीर माध्यम है इसकी उपेक्षा न करें मन को साथी बनाएं मन का आधारभूत तत्व शक्ति है
मन प्राणमय संसार का अंश है
मन और बुद्धि की संयुति शरीर के स्वस्थ रहने पर ज्यादा सक्रिय सचेत और उपयोगी हो जाती है
सोना जागना खानपान सही होना चाहिए अध्ययन स्वाध्याय की ओर उन्मुख हों
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मोहन भागवत जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें