‘हे हरि ! कस न हरहु भ्रम भारी ।
जद्यपि मृषा सत्य भासे जबलहिं कृपा तुम्हारी।’
प्रस्तुत है अभिज्ञ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 20 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*८७४ वां* सार -संक्षेप
1 जानकार
इन सदाचार संप्रेषणों का मूल उद्देश्य है कि हम अपना विवेक जाग्रत रखें मालिन्य को दूर करें सत्य के मार्ग पर चलते हुए पौरुष और पराक्रम को पूजें ,मनुष्यत्व का अनुभव करते हुए समाज -हित और राष्ट्र -हित के कार्य करें , परस्पर प्रेम आत्मीयता का भाव रखें, देश के प्रति दुर्भाव रखने वाले आस्तीन के सांपों से सावधान रहें, सकारात्मक सोच रखें,आत्मबोध और आत्मशोध का प्रयास करें, संसार -सागर में डूबते तिरते अध्यात्म के प्रकाश से प्रकाशित होने का प्रयास करें ताकि हम संसार को बर्दाश्त करने की शक्ति प्राप्त कर सकें
तुलसीदास जी ने जब अध्यात्म में प्रवेश किया तो
सीय राममय सब जग जानी। करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।।
उन्होंने बहुत से काम किये समाज की सेवा की कथा वाचन किया
विनयपत्रिका’ तुलसी की आत्मनिवेदनात्मक भक्ति की विनयावली है। इस प्रन्थ में भगवान राम के ‘ब्रह्मत्व’ का स्थान-स्थान पर उल्लेख किया गया है।
केसव! कहि न जाइ का कहिये।
देखत तव रचना बिचित्र हरि! समुझि मनहिं मन रहिये॥
सून्य भीति पर चित्र, रंग नहिं, तनु बिनु लिखा चितेरे।
धोये मिटइ न मरइ भीति, दुख पाइय एहि तनु हेरे॥
रबिकर-नीर बसै अति दारुन मकर रूप तेहि माहीं।
बदन-हीन सो ग्रसै चराचर, पान करन जे जाहीं॥
कोउ कह सत्य, झूठ कह कोऊ, जुगल प्रबल कोउ मानै।
तुलसिदास परिहरै तीन भ्रम, सो आपन पहिचानै॥
हे केशव! क्या कहूँ? कुछ कहते नहीं बनता ! कैसी अद्भुत लीला है आपकी
इस संसार-रूपी चित्र को निराकार चित्रकार ने शून्य की दीवार पर बिना रंग के संकल्प से ही बना दिया
जो धोने से नहीं मिटता। इसको मरण का भय है। सूर्य की किरणों में जो जल दिखाई देता है, उस जल में एक भयानक मगर रहता है। उस मगर के मुँह नहीं है, तो भी वहाँ जो भी जल पीने जाता है, चाहे वह जड़ हो या चेतन, यह मगर उसे ग्रस लेता है।
इस संसार को कोई सत्य तो कोई मिथ्या कहता है और कोई सत्य—मिथ्या से मिला जुला ; तुलसीदास के मत से तो जो तीनों भ्रमों सत् रज तम को दूर कर लेता है वही अपने असली स्वरूप को पहचान सकता है। और फिर अहं ब्रह्मास्मि भाव से निकलता है
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