22.12.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 22 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *८७६ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है उत्पुलक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 22 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण

  *८७६ वां* सार -संक्षेप

 1 प्रसन्न

इन भावनात्मक तात्विक मनोनुकूल सदाचार संप्रेषणों का मूल उद्देश्य है कि हम एकांगी चिन्तन को समाप्त कर अपना विवेक जाग्रत करें मालिन्य दूर कर सच्चाई के रास्ते पर चलते हुए पौरुष सामर्थ्य पराक्रम को पूजें , दम्भ को न पोषित करते हुए समाज -हित और राष्ट्र -हित के कार्य करें , एकात्म मानववाद की धारणा स्वीकारते हुए परस्पर प्रेम आत्मीयता का भाव रखें, देश के प्रति दुर्भाव रखने वाले मन के प्रतिकूल आस्तीन के सांपों से सावधान रहें, असमीक्षित समीक्षा को त्याग आत्मबोध और आत्मशोध का प्रयास करें, संसार -सागर में डूबते तिरते मनुष्य को भीतर से सशक्त बनाने वाले अध्यात्म के प्रकाश से प्रकाशित होने का प्रयास करें ताकि हम संकटों को बर्दाश्त करने की शक्ति प्राप्त कर सकें

संसार का सांसारिक बोध अत्यन्त अद्भुत है


किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।
तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।4.16।।

कर्म और अकर्म को परिभाषित करने में कवि अर्थात् बुद्धिमान पुरुष भी भ्रमित हो जाते हैं। इसलिए मैं तुम्हें कर्म अकर्म का स्वरूप समझाऊँगा जिसको जान लेने पर तुम संसार बन्धन से मुक्त हो जाओगे

 जो हमारे मन के अनुकूल होता है वह अच्छा जो प्रतिकूल होता है वह बुरा
और मन तो चंचल है
यह चंचल मन अचंचल कैसे बने
विद्याञ्चाविद्याञ्च यस्तद्वेदोभयं सह।
अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥

जो तत् को इस रूप में जानता है कि वह विद्या और अविद्या दोनों ही है वह व्यक्ति अविद्या से मृत्यु को पार कर विद्या द्वारा अमरत्व का आस्वादन करता है।

यह सब भारतीय चिन्तन है यह भारत देश अद्भुत है
जब जब इस पर संकट आता है कोई न कोई महापुरुष उत्पन्न हो जाता है भारतीय संस्कृति अमर है
लेकिन इसके बाद भी हमें हाथ पर हाथ रखकर बैठना नहीं है

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः

पुरोहित का अर्थ है आगे अवस्थित व्यक्ति, पूर्व नियुक्त व्यक्ति, धर्म कार्यों के संचालक मन्त्रिमण्डल का सदस्य

इन्हीं पुरोहितों के कारण भारत विश्व का गुरु बन गया

हमें अपने पौरोहित्य को समझना होगा
हमें कौन सा कर्म करना है इस पर विचार करें
नियमबद्धता आवश्यक है
अध्ययन और स्वाध्याय आवश्यक है लेकिन इसका समय न मिलने पर व्याकुलता न हो
यह भी देखें कि आपका परिवार आपके कितने अनुकूल है कितना समाज आपके साथ संयुत है लोगों में आपके प्रति सहज आकर्षण कितना है

इन सब बातों को आचार्य जी ने विस्तार से कैसे बताया जानने के लिए सुनें