23.12.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 23 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण *८७७ वां* सार -संक्षेप

 मैं अन्तरतम की आशा हूँ मन की उद्दाम पिपासा हूँ

 जो सदा जागती रहती है ऐसी उर की अभिलाषा हूँ ।

मैंने करवट ली तो मानो
हिल उठे क्षितिज के ओर छोर
 मैं सोया तो जड़ हुआ विश्व
  निर्मिति फिर-फिर विस्मित विभोर
मैंने यम के दरवाजे पर दस्तक देकर ललकारा है
मैंने सर्जन को प्रलय-पाठ पढ़ने के लिये पुकारा है
मैं हँसा और पी गया गरल
मैं शुद्ध प्रेम-परिभाषा हूँ,


प्रस्तुत है उत्प्रभ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 23 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
  *८७७ वां* सार -संक्षेप

 1 प्रकाश बिखेरने वाला
 
सारी दिशाओं में प्रकाश बिखेरने वाले इन भावनात्मक, तात्विक और राष्ट्र -भक्तों के मनोनुकूल सदाचारमय विचारों का मूल उद्देश्य है कि हम अपना विवेक जाग्रत करें मालिन्य दूर कर सच्चाई के रास्ते पर चलते हुए पौरुष सामर्थ्य पराक्रम को पूजें ,मनुष्यत्व का अनुभव करते हुए समाज -हित और राष्ट्र -हित के कार्य करें , एकात्म मानववाद की धारणा स्वीकारते हुए परस्पर प्रेम आत्मीयता का भाव रखें, देश के प्रति दुर्भाव रखने वाले मन के प्रतिकूल आस्तीन के सांपों से सावधान रहें और संगठित होकर उनके फन को कुचलें
 संसार -सागर में डूबते तिरते मनुष्य को भीतर से सशक्त बनाने वाले अध्यात्म के प्रकाश से प्रकाशित होने का प्रयास करें ताकि हम स्वयं को जान लें अपनी अनन्त शक्तियों को पहचान लें

आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम नित्य डायरी अवश्य लिखा करें डायरी साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा है हर चीज मन में स्थिर नहीं रह सकती मनुष्य के जीवन का विस्मृति भी एक वरदान है

चिंता करता हूँ मैं जितनी
उस अतीत की, उस सुख की,
उतनी ही अनंत में बनती जाती
रेखायें दुख की।

 इसी प्रकार स्मृति भी एक वरदान है यह संतुलन अद्भुत है इस संतुलन की अनुभूति से वह दैहिक दैविक और भौतिक कष्टों में भी आनन्दित रहता है
गीत गाते रहो गुनगुनाते रहो
सांस जब तक सदा मुस्कराते रहो

संपूर्ण प्रकृति में जब तक सांस रहती है वह मुस्कराती रहती है वही प्रकृति हमारे भीतर सूक्ष्म रूप में रहती है
उसकी अनुभूति हमें प्रसन्न रखती है
संसार तो संकटों का अम्बार है इसलिए आत्मस्थता आवश्यक है


अकेले तुम कैसे असहाय

यजन कर सकते? तुच्छ विचार!

तपस्वी! आकर्षण से हीन

कर सके नहीं आत्म विस्तार।

आत्मविस्तार मनुष्य के जीवन का आनन्द है
आत्मानन्द में डूबे चिन्तक विचारक लेखक कवि को लगता है उसे सब कुछ मिल गया है

दुनिया औरों को सदाचार सिखलाती है
पर स्वयं असंयम कदाचार की अभ्यासी
हो गई दशा वैसी ही अजब जमाने की
जैसे प्रवचन करता कलयुग का संन्यासी

हर ओर सुधार सभाओं की गहमागहमी
पर स्वयं सुधरने को कोई तैयार नहीं
अपनेपन की पहचान खो गई है सबकी
इसलिये सभी को लगता कोई नहीं सही.....

इसके अतिरिक्त हमीरपुर के एक गांव की आचार्य जी ने चर्चा क्यों की हीमोग्लोबिन किसका कम हो गया था जानने के लिए सुनें