क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।2.3।।
प्रस्तुत है वर्चस्मिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 24 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*८७८ वां* सार -संक्षेप
1 शक्तिशाली
सत्कर्मों की ओर प्रेरित करते इन भावनात्मक, तात्विक चिन्तन से परिपूर्ण और राष्ट्र -भक्तों के मनोनुकूल सदाचारमय विचारों का मूल उद्देश्य है कि हम अपना विवेक जाग्रत करें मालिन्य दूर कर सच्चाई के रास्ते पर चलते हुए पौरुष सामर्थ्य पराक्रम को पूजें ,मनुष्यत्व का अनुभव करते हुए समाज -हित और राष्ट्र -हित के कार्य करें , एकात्म मानववाद की धारणा स्वीकारते हुए परस्पर प्रेम आत्मीयता का भाव रखें, देश के प्रति दुर्भाव रखने वाले राष्ट्र को मात्र भूमि का अंश मानने वाले आस्तीन के सांपों से सावधान रहें और संगठित होकर उनके फन को कुचलें
संसार -सागर में डूबते तिरते मनुष्य को भीतर से सशक्त बनाने वाले अध्यात्म के प्रकाश से प्रकाशित होने का प्रयास करें ताकि हम स्वयं को जान लें अपनी अनन्त शक्तियों को पहचान लें
कर्म करना मनुष्य का स्वभाव है लेकिन कर्म करने मात्र में हमारा अधिकार होना चाहिए फल में कभी नहीं। अतः न तो कर्मफल के हेतु वाले हम बनें और न अकर्म में हमारी आसक्ति हो।
जैसा गीता में कहा गया है
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।
यह अद्भुत बात है कि कर्म करें और फल की इच्छा न करें कर्म करते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि सर्वत्र परमात्मा विद्यमान है
परमात्मा जो करता है सब अच्छा ही करता है
परमात्मा निर्विकार भाव से कर्म करता है
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्।।2.45।।
मनुष्य के जीवन की मनुष्यता वैशिष्ट्य लिए हुए है हम परमात्मा का अंश हैं अहं ब्रह्मास्मि
परमात्मा जब विकारी होता है उसमें इच्छा उत्पन्न होती है
तो
एकोऽहं बहुस्याम
यह अध्यात्म है इस अध्यात्म का वर्णन उपनिषदों में मिलेगा
हम अपने सद्ग्रंथों का अध्ययन करें और उनके व्यावहारिक प्रयोग के लिए अध्ययन के पश्चात् चिन्तन करें फिर मनन
जहां पर हम हैं वहीं हम रमें तो इसके अद्भुत परिणाम सामने आते हैं
आज ९८ बैच का रजत जयन्ती कार्यक्रम हो रहा है
इसमें हम उत्साहपूर्वक भाग लें लेकिन मन में यह भाव रखें कि हम किसी के यन्त्र हैं कोई हमें चला रहा है
देशभक्त भी इसी भाव में रहते हैं इस भाव से ही अपने कर्म धर्म का परिपालन करें
कार्यक्रम केवल आनन्द के लिए नहीं एक लक्ष्य को लेकर है
वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने समर्थ गुरु रामदास की विवाह संबन्धित क्या चर्चा की भगवा ध्वज का शिवाजी से क्या संबन्ध था जानने के लिए सु