प्रस्तुत है अनुशिक्षिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 26 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*८८० वां* सार -संक्षेप1 क्रियाशील
असीमित शक्तियों के पुञ्ज उदयाचल के उपासक आत्म को परमात्म से संयुत करने वाले भा में रत हम राष्ट्र-भक्तों को सत्कर्मों की ओर प्रेरित करते इन भावनापूर्ण विचारों , जिन्हें सुनने के लिए हम प्रतिदिन लालायित रहते हैं,का मूल उद्देश्य है कि हम मनुष्यत्व का अनुभव करते हुए समाज -हित और राष्ट्र -हित के कार्य करें , प्रेम आत्मीयता का भाव रखें, संपूर्ण जीवन जीने के सार्वभौमिक सत्य अर्थात् अध्यात्म के प्रकाश से स्वयं को प्रकाशित करने का प्रयास करें प्राणिक ऊर्जा की धनी अद्भुत भारतीय जीवनशैली को अपनाएं साथ ही पश्चिमी जीवनशैली के सद्गुणों की भी अनदेखी न करें
उचित खानपान की ओर ध्यान दें ओछी सिद्धि में न भटकें यज्ञाग्नि को पुनः प्रदीप्त करें ज्ञान-दीपक को दीप्त करें विद्या अविद्या दोनों को जानें एकांगीपन से दूर ही रहें हमारे अन्दर बहुविध आयाम जैसे अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन ध्यान धारणा लेखन आदि प्रविष्ट हों
हम सभी भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हैं भक्ति शक्ति राग विराग कर्म अकर्म से युक्त भावना मनुष्य को मिला एक अद्भुत तत्व है संवेदनशीलता से परिपोषित भावना से ही वह संसार को प्रभावित करता है और स्वयं भी उसी के कारण संसार से प्रभावित भी होता है
जिस व्यक्ति में इसी भावना को विचारों में ढालने की शक्ति होती है वह विशिष्ट हो जाता है
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि इसी भावनात्मकता की हम अनुभूति करें
इसी भावनात्मकता से उपजी आचार्य जी की निम्नांकित पंक्तियां देखिए
हम चलेंगे साथ तो संत्रास हारेगा
पूर्व फिर से अरुणिमा आभास धारेगा
हम सृजन पर ही सदा विश्वास रखते थे
यजन में ही जिंदगी की आस रखते थे
भोग में अनुरक्त जीवन था नहीं अपना
जगत को हरदम समझते आए हम सपना
आज लेकिन हो गए भटके हुए राही
लग रहा जैसे कि कुछ भी है न कुछ था ही.....
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम लेखन की ओर अवश्य उन्मुख हों लेखन अपनी शक्ति और बुद्धि का सामञ्जस्य स्थापित करती है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने चौखम्बा प्रकाशन का नाम क्यों लिया पं दीनदयाल जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें