प्रस्तुत है अमायिक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 4 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
८५८ वां सार -संक्षेप
1 निश्छल
तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः।
ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा।।17.23।।
ॐ तत् सत् शब्द को सृष्टि के प्रारम्भ से ही सर्वोच्च परम सत्य का प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व घोषित किया गया है।
इन तीनों नामों से जिस परमपिता परमेश्वर का निर्देश किया गया है, उसी ने सृष्टि के प्रारम्भ में वेदों, ब्राह्मणों, यज्ञों की रचना की है
इसी कारण यज्ञ करते समय, दान देते समय, या तपस्या करते समय, वेदों के व्याख्याकार ॐ का उच्चारण करके प्रारम्भ करते हैं
जो व्यक्ति सकाम पुरस्कार की इच्छा नहीं रखते अपितु सांसारिक उलझनों से मुक्त होना चाहते हैं वे तपस्या, त्याग और दान के कार्यों के साथ "तत्" शब्द का उच्चारण करते हैं।
"सत्" शब्द का प्रयोग शुभ कार्य का वर्णन करने के लिए भी किया जाता है। यज्ञ, तप और दान के आचरण में स्थित होना भी सत् शब्द से वर्णित है।
इसी सत् का आचरण सदाचरण है इसकी आवश्यकता संसार में उपस्थित अनेक प्रकार के भय और भ्रम के निवारण के लिए होती है
ॐ तत् सत् की गहरी अनुभूति होने पर हम बोलते हैं
अहं ब्रह्मास्मि
यह अनुभूति का विषय है अभिव्यक्ति शब्दों से की जाती है लेकिन उन शब्दों के अनेक अर्थ होते हैं अपने मन के अनुसार व्यक्ति उनके अर्थ लगाया करते हैं इसी कारण कहा भी गया है
वेदा विभिन्नाः स्मृतयो विभिन्ना नासौ मुनिर्यस्य मतं न भिन्नम् ।
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः स पन्थाः ॥
हम मनुष्य हैं लेकिन हमें मनुष्यत्व की अनुभूति नहीं होती उस तत्व को हम नहीं जान पाते लेकिन यदि कुछ देर के लिए ही सही यदि हम इसकी अनुभूति कर लेते हैं तो आनन्दार्णव में तैरने लगते हैं
बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पाँचवें सरसंघचालक श्री कुप्पाहाली सीतारमय्या सुदर्शन (१८ जून १९३१ रायपुर -१५ सितंबर २०१२ रायपुर ) कहते थे कि आने वाले समय में धार्मिक भावना का प्रकटीकरण बहुत होगा
योगियों साधकों कथावाचकों के पास बहुत लोग कुछ पाने के लिए जाते रहते हैं
वह कुछ है यशस्विता सुख शान्ति सुविधा और मृत्यु के समय भय न रहे इनकी कामना के लिए
आचार्य जी ने मिथ्यात्व को परिभाषित किया
संसार सत्य मिथ्यात्व प्रदर्शन दर्शन का शिव संगम है
आकर्षण और विकर्षणमय यह नाट्यमंच जड़ जंगम है
इसके अतिरिक्त भक्ति का द्वार कैसे खुलता है आदि जानने के लिए सुनें