इसने कभी किसी खलनायक को भी नहीं दिया है धोखा,
किंतु किसी अत्याचारी को नहीं पनपने दिया कभी भी ,
अतिचारी महलों को उसके बना दिया पल भर में खोखा। ।
प्रस्तुत है स्थिरचित्त ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष चतुर्थी/ पञ्चमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 31 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*८८५ वां* सार -संक्षेप
1 विचार या संकल्प का पक्का
आचार्य जी का नित्य प्रयास रहता है कि हम इन सदाचारमय विचारों को सुनकर चिन्तन मनन की गहराइयों में उतरकर उत्साह उल्लास से भरकर कर्मानुरागी बनें
अस्ताचल देशों की भोगवृत्ति का त्याग करें पतन मार्ग पर न चलें दुनिया की गति मति न देख अपने आदर्शों को देखें विश्वासी भक्त बनें ध्यान धारणा अध्ययन स्वाध्याय लेखन में रत हों कर्म -प्रमाद दूर करें
युगभारती संगठन के सदस्य के रूप में हमारा कर्तव्य हो जाता है कि हम इस संगठन में प्रेम आत्मीयता का विस्तार करें
हमारा देश भारत भी प्रेम आत्मीयता का विस्तार करता रहा है कर्म यहां की सबसे मुखरित भाषा रही है
इतना कर्मानुरागी चिन्तक विश्वासी विचारक देश भारत भ्रमित हो गया
हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा
अरुणाचल की छवि बनी नयन मे धुँधली कंचन रेखा
अब समय है कि हम भ्रमित न रहें जवानी को बेचैन करने का समय आ गया है
*राही फिर से राह बनानी*
औऱ नई पीढ़ी को भी भ्रम से दूर करें
पौरुष को तकदीर बदलनी आती है
कौशल को हरदम तदबीर सुहाती है
उत्साहों को सभी मंजिलें छोटी हैं
असंतोष को भली बात भी खोटी है
संशय से विश्वास हमेशा जीता है
भ्रम के अंधकार में दीपक गीता है
मन की कमजोरी जीवन में घातक है
विश्वासी से दगा घोरतम पातक है
सत्य विश्व की सबसे बड़ी साधना है
सुख में यश मुट्ठी में रेत बांधना है
समझ बूझ कर भी दुर्गुण का त्याग नहीं
आस्तीन के भीतर बैठा नाग कहीं
उपदेशों से जीवन नहीं संवरता है
पाता वही यहां पर जो कुछ करता है
जीवन कर्म कुशलता की परिभाषा है
कर्म यहां की सबसे मुखरित भाषा है
कर्म -प्रमाद निराशा की परछाई है
पतन मार्ग की सबसे गहरी खाई है
कर्म करें विश्वास करें अपनेपन पर
मन में नव उल्लास रहेगा जीवन भर
आचार्य जी की सन् २००८ में लिखी एक और कविता
उम्मीदों पर तौल रहा था उगती हुई जवानी को...
भी अद्भुत है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा की चर्चा क्यों की प्रो माता प्रसाद जी का कथन ' हाथ से निकाल डालो 'का क्या आशय है जानने के लिए सुनें