6.12.23

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 6 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण ८६० वां सार -संक्षेप

 जागो, जागो आया प्रभात,

बीती वह, बीती अन्ध रात,

झरता भर ज्योतिर्मय प्रपात पूर्वाचल

बाँधो, बाँधो किरणें चेतन,

तेजस्वी, हे तमजिज्जीवन,

आती भारत की ज्योतिर्धन महिमाबल।



प्रस्तुत है अमलिन ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  मार्गशीर्ष  कृष्ण पक्ष नवमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार  6 दिसंबर 2023 का  सदाचार संप्रेषण 

  ८६०  वां सार -संक्षेप


 1 पवित्र



इन सदाचार संप्रेषणों के सदाचारमय विचार हम सबके लिए अत्यन्त उपयोगी ऊर्जाप्रद और ग्राह्य हैं 

ये विचार संसार में रहने के लिए संसार की समस्याओं को सुलझाने के लिए अत्यन्त उपयोगी हैं इसमें अतिशयोक्ति नहीं 

आत्मशोध के लिए प्रयासरत रहते हुए हमारा कर्तव्य बनता है कि हम इन विचारों का प्रसार भी करें



हम मानस पुत्रों के प्रति अत्यन्त अनुरक्त आचार्य जी, जो प्रायः भाव विचार क्रिया का अद्भुत सामञ्जस्य बैठाते रहते हैं,नित्य हमें अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन निदिध्यासन लेखन के लिए प्रेरित करते हैं

लेखन कार्मिक योजना का सैद्धान्तिक पक्ष है

लेखन भावनाओं से उद्भूत होता है


आचार्य जी, जिनके अधरों में अमृत है, का कवित्व अद्भुत है

कवित्व का अर्थ है आत्माभिव्यक्ति,

भावों का प्रकटीकरण,

विचारों के शिखरों का स्पर्श

यह हृदय में उत्साह भर देता है और भटके राही को राह दिखाने में सक्षम है 

सभी कलाओं में सिरमौर कविता सुषुप्त लोगों को जगा देती है यह मन का विश्वास भाव की भाषा है निराश व्यक्ति के लिए आशा की किरणें ले आती है 


कविता कल्याणी कीर्ति कर्म की धारा है

जूझती तरी के लिए सुरम्य किनारा है


कवयिता आचार्य जी ने सन् २००६ में  बहुत सा दर्द समेटकर अन्तर में गरल पचाने वाले और विषम परिस्थितियों में रह रहे जागरूक कवि पथ- प्रदर्शक तुलसीदास


(देश-काल के शर से बिंधकर

यह जागा कवि अशेष, छविधर

इनका स्वर भर भारती मुखर होएँगी;

निश्चेतन, निज तन मिला विकल,

छलका शत-शत कल्मष के छल

बहतीं जो, वे रागिनी सकल सोएँगी।)


पर लिखी एक कविता सुनाई


प्रचंड तेज शक्ति शील रूप के विधान हो

अनिन्द कर्म धर्म मर्म शर्म संविधान हो

उदार हो विदार हो प्रफुल्ल कोविदार हो

प्रसार भक्ति भाव राम नाम के प्रचार हो


भावों की  एक और अभिव्यक्ति देखिए मानव जीवन वास्तव में अद्भुत विलक्षण है 


यह जीवन सुख दुःख लाभ हानि उत्थान पतन वैभव अभाव संयोग वियोग प्रीति विग्रह धन यश के प्रति अद्भुत लगाव......


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी भैया शौर्यजीत जी भैया नीरज जी भैया अनिल महाजन जी का नाम क्यों लिया

कोयले से पत्थरों पर कौन लिखता था जानने के लिए सुनें