प्रस्तुत है अमेयात्मन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष दशमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 7 दिसंबर 2023 का सदाचार संप्रेषण
*८६१ वां* सार -संक्षेप1 महात्मा
हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराई।
बूँद समानी समुंद मैं, सो कत हेरी जाइ॥
यदि थोड़ी देर हमें आत्मस्थता की अनुभूति होने लगेगी मनुष्यत्व का अनुभव होने लगे तो हम प्रदर्शन से दूर रहेंगे हमारा भय भ्रम जाता रहेगा हम आनन्दार्णव में तैरने लगेंगे हमारा लक्ष्य यह भी हो कि हम अपनी जीवनचर्या व्यवस्थित करें उचित खानपान की ओर ध्यान दें इन सदाचार संप्रेषणों से हमें इसी की प्रेरणा मिलती है मनुष्य का जीवन परमात्म प्राप्ति का उपोद्घात है
मनुष्य जीवन अद्भुत है संसार का सार समझने के लिए हम यदि प्रयत्नशील रहते हैं तो यह भगवान् की कृपा का प्राप्तव्य है हम चिदानन्द हैं प्रायः अनुभव नहीं कर पाते इसका कारण है हमारी सांसारिकता में बहुत अधिक व्यस्तता
गीता में हम देखते हैं कि अर्जुन जैसे महात्मा को व्यामोह कैसे प्रभावित कर जाता है तो भगवान् समझाते हैं
विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।
निर्ममो निरहंकारः स शांतिमधिगच्छति।।2.71।।
जो व्यक्ति सभी कामनाओं का त्याग करके स्पृहा रहित, ममता रहित, अहंकार रहित होकर आचरण करता है, वह शान्ति को प्राप्त होता है।
एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति।
स्थित्वाऽस्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति।।2.72।।
हे पृथापुत्र ! यह है ब्राह्मी स्थिति जिसे प्राप्त कर कभी कोई मोह से ग्रस्त नहीं होता। इस स्थिति में यदि अन्तकाल में भी स्थित हो जाय, तो निर्वाण ब्रह्म की प्राप्ति निश्चित है
एक ओर तो भगवान् कह रहे हैं कि युद्ध करो और फिर कह रहे हैं ब्राह्मी स्थिति में जाओ यह समझ से परे है
अर्जुन भ्रमित है
यदि कर्म से ज्ञान श्रेष्ठ है तो फिर मुझे इस भयंकर कर्म में क्यों लगने के लिए कह रहे हैं
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि गीता के तीसरा अध्याय का अध्ययन और मनन करें
आचार्य जी ने बताया ऐसा संभव है कि *राम की शक्तिपूजा* यदि भाव से पढ़ी जाए तो समुद्र में लहरें आने लगेंगी
कृतिवास रामायण से अधिक प्रभावित *राम की शक्तिपूजा* महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित काव्य है। जिसका सृजन २३ अक्टूबर १९३६ को सम्पूर्ण हुआ था
इसमें निराला जी के स्वरचित छंद 'शक्ति पूजा' का प्रयोग किया गया है।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा भैया आकाश भैया पंकज भैया प्रमेन्द्र का नाम क्यों लिया
संत रामसुखदास जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें