12.1.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 12 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *८९७ वां* सार -संक्षेप

 


निराशा हो न क्षणभर और आशा की न आशा हो
परम पुरुषार्थमय विश्वास की आजन्म भाषा हो
रहे हे देव! मेरा सत् समर्पण राष्ट्र -हित में ही
न अपने स्वार्थ हित आजन्म कोई भी पिपासा हो l

प्रस्तुत है प्रज्ञिन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 12 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
  *८९७ वां* सार -संक्षेप

 1 बुद्धिमान्


त्याग बलिदान सेवा समर्पण पुरुषार्थ पराक्रम की प्रतीक अपनी मातृभूमि को सशक्त सक्षम समर्थ बनाने में हमारा सत् समर्पण कराना, हमें इस प्रकार उत्साहित करना कि क्षण भर भी हम निराश न हों ,हमारे चैतन्य और आत्मबोध को जाग्रत करना,हमें परम पुरुषार्थमय मनुष्यत्व की अनुभूति कराना, हमारी छिपी हुई विलक्षण अन्तर्शक्तियों से हमारी पहचान कराना ,हमें संपूर्ण विश्व के हित में रत भारतीय साहित्य से सुपरिचित कराना और चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन निदिध्यासन के साथ साथ परिशुद्ध चित्त के साथ समाज -सेवा में लगाना आचार्य जी का उद्देश्य रहता है
भावों से अपने को अत्यन्त धनी होने का अनुभव करते हुए आइये प्रवेश करें आज की वेला में


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का राष्ट्रीय चिन्तन जन्म से ही प्रयोगधर्मी रहे वेदान्त के सुविख्यात और अत्यन्त प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानन्द पर आधारित है जिनका जन्म कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली कायस्थ परिवार में १२ जनवरी १८६३ ( राष्ट्रीय युवा दिवस )को देश में व्याप्त विषम परिस्थितियों में हुआ था
 बचपन में उनका नाम वीरेश्वर था और औपचारिक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। दादा दुर्गाचरण दत्त संस्कृत फ़ारसी के विद्वान थे विवेकानन्द की माता भुवनेश्वरी देवी अत्यन्त धार्मिक विचारों की महिला थीं, जिनके लिए विवेकानन्द साक्षात् शिव या शिव के गण थे,का अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना में व्यतीत होता था। माता पिता की प्रगतिशील विचारों से परिपूर्ण धार्मिकता ने उनकी सोच और व्यक्तित्व को आकार देने में सहायता दी
स्वामी विवेकानन्द, जिनके सिद्धान्त और आदर्श भारतीय युवकों के प्रेरणास्रोत हैं, ने अपना जीवन अपने गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस को समर्पित कर दिया
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि विवेकानन्द साहित्य के पहले खंड के हिन्दू धर्म पर आधारित चार पृष्ठ अवश्य पढ़ें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनोज बेरिया जी और उनके भाई का नाम क्यों लिया भैया राजेश गर्ग जी भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी राठ वाले भैया दिनेश जी भैया मनीष कृष्णा जी की चर्चा किस संदर्भ में हुई शिक्षक को कैसा होना चाहिए आदि जानने के लिए सुनें