प्रस्तुत है टुष्टुक -रिपु¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 15 जनवरी 2024 ( मकर संक्रान्ति )का सदाचार संप्रेषण
*९०० वां* सार -संक्षेप1 दुष्ट का शत्रु
योगविधि की एक अद्भुत और महत्त्वपूर्ण विधा है कि स्वयं का कथन हम स्वयं ही सुनें स्वयं को सुनना स्वयं को गुनना आत्मस्थ होने का एक प्रकार है हमें यह अनुभूति होनी चाहिए कि परमात्मा हमारे अन्दर विद्यमान् है
हम सामान्य नहीं हैं हम शक्तिहीन नहीं हैं अपने शरीर को साधें
अपना कल्याण ही राष्ट्र का कल्याण है हमारा देश अद्भुत है हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारा जन्म इस देश में हुआ है
हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है
और इसके लिए स्वयं के साथ साथ आडम्बरों से भरे संसार के अंधकार को समस्याओं को दूर करने के लिए अपने भीतर के शौर्य शक्ति पराक्रम तप त्याग बलिदान को जाग्रत करना अपनी शिथिलता को दूर करना हमारा उद्देश्य होना चाहिए
यही रामत्व है हमारा सौभाग्य है कि रामत्व की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है आइये इस रामोत्सव में सम्मिलित होएं
रामो विग्रहवान् धर्मः
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥
तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन। जानहिं भगत भगत उर चंदन॥2॥
मन से विजयी होने का संकल्प लें ताकि समस्याओं के हल हम खोज सकें मन को परिपोषित करें
मननशील को मुनि कहते हैं मननशीलता के रहस्य को जानने वाला ऋषि है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सिद्धनाथ जी और भैया मुकेश जी की चर्चा क्यों की ट्रेन में बिजली के इलाज से क्या तात्पर्य रहा स्वामी विवेकानन्द का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें