संयमित पौरुष पास जिनके, वे पुरुष परिपूर्ण हैं।
जो हैं प्रमंडित शौर्य से, सचमुच वही संपूर्ण हैं। ।
प्रस्तुत है निकषात्मज -रिपु¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 16 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
९०१ वां सार -संक्षेप
1 राक्षस का शत्रु
हम लोग सौभाग्यशाली हैं कि आचार्य जी नित्य हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं
और
जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार।
संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥6॥
संसार के सत् असत् को जानकर अपने कर्तव्य को पहचानकर और उस कर्तव्य से अधिक से अधिक लोगों को जाग्रत कर हम अपने लक्ष्य की ओर चलते रहें
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ॥
लक्ष्य है मोक्ष मोक्ष है आनन्द हर जगह सुख शान्ति
संसार के लिए बोझ के समान दुष्टों का दमन और शिष्टों का उन्नयन हो
जगे हम, लगे जगाने विश्व,
लोक में फैला फिर आलोक,
व्योमतम पुंज हुआ तब नष्ट,
अखिल संसृति हो उठी अशोक
हम गहन चिन्तन अध्ययन स्वाध्याय निदिध्यासन सत्संगति की ओर उन्मुख हों
अगली पीढ़ी को संस्कारित करने के लिए उनके साथ समय व्यतीत करें
इस समय राममन्दिर का आधार लेकर जनजागरण के लिए हम सन्नद्ध हो रहे हैं
अद्भुत भक्तिमय वातावरण है जहां विष भी अमृत हो जाता है
उत्तरायण सूर्य का संदेश है
और यह हम सभी को उपदेश है
उत्तरोत्तर हम सभी बढ़ते रहें
प्रगति के उन्नत शिखर चढ़ते रहें
दोष औरों के न सिर मढ़ते रहें
व्यर्थ का चिंतन न कर कुढ़ते रहें
स्वयं के कर्तव्य को पहचानकर
इस जगत के सत् असत् को जानकर
लक्ष्य के पहले न क्षण भर भी रुकें
शत्रु के सम्मुख न तिल भर भी झुकें
हम सभी का शौर्यमण्डित भाव हो
संयमन हो औऱ प्रमन स्वभाव हो
कष्टों से गुजर रही मीराबाई ने तुलसीदास से मार्गदर्शन लिया
तो तुलसीदास ने गहन संदेश वाला एक पत्र लिखा
जाके प्रिय न राम-बदैही।
तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही॥
तज्यो पिता प्रहलाद, बिभीषन बंधु, भरत महतारी।
बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज-बनितन्हि, भये मुद-मंगलकारी॥
नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेब्य कहौं कहाँ लौं।
अंजन कहा आँखि जेहि फूटै, बहुतक कहौं कहाँ लौं॥
तुलसी सो सब भाँति परम हित पूज्य प्रानते प्यारो।
जासों होय सनेह राम-पद, एतो मतो हमारो॥
जिसे संयम त्याग तपस्या शौर्य पराक्रम सिद्धि के प्रतीक प्रभु श्री राम और मां जानकी प्रिय नहीं, उसे करोड़ों शत्रुओं के समान त्याग देना चाहिए, चाहे वह अपना अत्यंत ही प्रिय क्यों न हो। प्रह्लाद ने अपने पिता को, विभीषण ने अपने भाई को और ब्रज की गोपियों ने अपने अपने पतियों को त्याग दिया, लेकिन ये सभी आनंद और कल्याण करने वाले हुए। जितने सुहृद् और पूज्य व्यक्ति हैं, वे सब श्रीराम जी के ही संबंध और प्रेम से माने जाते हैं, और अधिक क्या लिखूं । जिस अंजन के लगाने से आँख ही फूट जाए, वह किस काम का?
तुलसीदास कहते हैं कि जिसकी संगति या उपदेश में श्री रामजी के चरणों में प्रेम हो, वही हर तरह से अपना परम हितकारी, पूजनीय और प्राणों से भी अधिक प्रिय है। हमारा तो यही मानना है।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पवन जी भैया पङ्कज जी भैया अमित गुप्त जी भैया भरत सिंह जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें