करसि पान सोवसि दिनु राती। सुधि नहिं तव सिर पर आराती॥
राज नीति बिनु धन बिनु धर्मा। हरिहि समर्पे बिनु सतकर्मा॥4॥
बिद्या बिनु बिबेक उपजाएँ। श्रम फल पढ़ें किएँ अरु पाएँ॥
संग तें जती कुमंत्र ते राजा। मान ते ग्यान पान तें लाजा॥5॥
प्रस्तुत है राम काज करिबे को आतुर आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 18 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
९०३ वां सार -संक्षेप
अपनत्व, गांभीर्य और आत्मबोध -चिन्तना के पर्याय शिक्षकत्व का भावबोध जिन व्यक्तियों में, जैसे हमारे आचार्य जी जो अपना अमरत्व भाव भूले व्यक्तियों को,अनीति के पथ पर भ्रमवश चल रहे व्यक्तियों को रामत्व की अनुभूति कराने में शौर्य प्रमंडित भाव भक्ति की अनुभूति कराने में अपने अपरिमित शक्ति को भूले हिन्दू समाज को जगाने में निरन्तर प्रयासरत हैं , अपरिमित रूप में प्रविष्ट हो जाता है उनकी शक्ति इस संसार में अत्यधिक अद्भुत और महत्त्वपूर्ण हो जाती है
ऐसे शिक्षकों की उपस्थिति से समाज सनातनत्व की अनुभूति करता है हमारे देश की शिक्षक परम्परा जिसमें मां
( सौ बार धन्य वह एक लाल की माई,
जिस जननी ने है जना भरत-सा भाई। )
को प्रथम शिक्षक होने का सम्मान प्राप्त हुआ है अद्भुत रही है
आज कल सनातनत्व के पुनर्जागरण का काल चल रहा है हम लोग रामोत्सव मना रहे हैं श्रीरामरथ और अन्य प्रकार से गांवों को समाज को जगाने का काम अत्यन्त उत्साह से चल रहा है हमें ऐसे अवसरों को नहीं चूकना चाहिए
ऐसा ही श्री रामजन्मभूमि आंदोलन चला था ढांचा ढहा दिया गया साक्षात् हनुमान जी नर्तन कर रहे थे उसी श्री रामजन्मभूमि आन्दोलन के शिल्पी श्रद्धेय श्री अशोक सिंघल जी पर आचार्य जी के निम्नांकित भाव अद्भुत हैं
"जय श्रीराम" शौर्य-स्वर देकर जिसने देश जगाया था ,
जिस स्वर ने हिंदुत्व धार को खरतर कर चमकाया था ,
जिसने भाव भक्ति को विक्रम का उद्बोध कराया था,
जिसने दंभी राजतंत्र को घुटनों बल बैठाया था ,
उस अमरत्व भाव को मेरा अगणित बार प्रणाम नमन ,
उसकी स्मृति अब भी हमको कर देती है दृप्त प्रमन ।।
जिसका स्वर संगीत सदा ही शौर्य शक्ति से झंकृत था ,
जिस स्वर का आलाप दिव्य भावों से सहज अलंकृत था,
जिसकी वाणी में तपव्रत की आग वीरता भरी रही ,
जिससे देशद्रोह वाली संताने हरदम डरी रही ,
उस विजय व्रत वाली वाणी को मेरा सर्वदा नमन ,
उसकी स्मृति से ही अब भी खिल उठता मुरझता चमन ।।
थे अशोक पर शोक एक था "जन्मभूमि थल" बोझिल है ,
राजनीति के चक्रव्यूह में दिशा दृष्टि से ओझल है ,
तुम भरकर हुंकार बढ़े ढह गया तमाशा सदियों का ,
भ्रम मिट गया गुलामी लादे मिथ्या "सेकुलर वदियों" का ,
हे हिंदू की शान मान सम्मान तुम्हें शत बार नमन ,
प्रलय काल तक हिंदुदेश उल्लसित रहेगा मुदित मगन ।।
जय जय श्री राम
किष्किंधा काण्ड में
अंगद कह रहे हैं - मैं पार तो चला जाऊँगा, लेकिन लौटते समय के लिए मेरे हृदय में कुछ भ्रम है। जाम्बवान कहते हैं -तुम सब प्रकार से योग्य तो हो किन्तु तुम ही सबके नेता हो तो तुम्हे कैसे भेजा जाए?
अंगद कहइ जाउँ मैं पारा। जियँ संसय कछु फिरती बारा॥
जामवंत कह तुम्ह सब लायक। पठइअ किमि सबही कर नायक॥1॥
लेकिन जाम्बवान हनुमान जी को देख रहे हैं
कहइ रीछपति सुनु हनुमाना। का चुप साधि रहेहु बलवाना॥
पवन तनय बल पवन समाना। बुधि बिबेक बिग्यान निधाना॥2॥
कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं॥
राम काज लगि तव अवतारा
इतना सुनते ही हनुमान जी विशालकाय हो गए
और
माली मेघमाल, बनपाल बिकराल भट,
नीके सब काल सींचे सुधासार नीर को।
मेघनाद ते दुलारो प्राण ते पियारो बाग,
अति अनुराग जिय यातुधान धीर को॥
तुलसी सो जानि सुनि, सीय को दरस पाइ,
पैठो बाटिका बजाइ बल रघुबीर को।
विद्यमान देखत दसानन को कानन सो,
तहस-नहस कियो साहसी समीर को॥
उस वाटिका के माली मेघमाल और रक्षक बड़े बड़े विकराल योद्धा थे। वाटिका हर ऋतु में अमृत जैसे जल से सींची जाती थी । रावण को वह बाग मेघनाद और अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय था। यह जानते हुए भी मां सीता के दर्शन करने के पश्चात् पिता प्रभु राम के बल पर हनुमान जी उस बाग में ताल ठोककर प्रवेश कर गए और उसे मां और पिता की कृपा से प्राप्त शक्ति के बल पर नष्ट कर डाला।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने पूज्य भाईसाहब का नाम,भैया मुकेश जी का नाम क्यों लिया आदि जानने के लिए सुनें