19.1.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष नवमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 19 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण ९०४ वां सार -संक्षेप

 कस्तूरी कुंडली बसै, मृग ढूंढै बन माहि। ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखत नाहीं। '



प्रस्तुत है  तुङ्ग ¹  आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज  पौष शुक्ल पक्ष नवमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार  19 जनवरी 2024 का  सदाचार संप्रेषण 

  ९०४ वां सार -संक्षेप


 1  जोशीला

सांकेतिक जागरण के अभियान के रूप में चल रहे इस सदाचार संप्रेषण के लाभ अनगिनत हैं सुनकर देखकर  समझकर सारा समाज कैसे जागे इसका प्रयास हो रहा है अपने को अपनों के साथ संयुत करने के मार्ग निकाले जा रहे हैं हमें प्रतिदिन प्रेरित करने का आचार्य जी का यह महत्त्वपूर्ण प्रयास  इसलिए रहता है कि हमारी यशस्विता, तपस्या की आंच हर दिशा में प्रसरित हो जाए

दुर्व्यसनों के प्रति हमारा तुरायण हो जाए हमारे अन्दर  ऐसा परिवर्तन आ जाए  जो राष्ट्र और समाज के लिए लाभकारी हो हमारा अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन लेखन विद्वत्ता समाजोन्मुखी हो जाए हम समाज की समस्याओं के हल निकालें भारतवर्ष जहां का अध्यात्म रोम रोम में बसा रामोन्मुखी अध्यात्म है के उत्थान के लिए हम रामाश्रित हो जाएं  हम जाग्रत प्रकाशपुंज बन जाएं 

अतिसय रगड़ करै जो कोई, अनल प्रगट चन्दन ते होई”

गोस्वामी तुलसीदास का भाव जब भक्ति और फिर उस भक्ति से उत्पन्न शक्ति बन गया तो उनकी साधना के साथ जागरण प्रारम्भ हो गया

उनका भाव देखिए


जागैं जोगी-जंगम, जती-जमाती ध्यान धरैं

 

      डरैं उर भारी लोभ, मोह, कोह,कामके।

जागैं राजा राजकाज, सेवक-समाज,साज,

       सोचैं सुनि समाचार बड़े बैरी बामके॥


जागैं बुध बिद्या हित पंडित चकित चित, 

       जागैं लोभी लालच धरनि ,धन धामके।

जागैं भोगी भोग हीं, बियोगी, रोगी सोगबस,

       सोवैं सुख तुलसी भरोसे एक रामके



योगी व्यक्ति , जंगम अर्थात् शिवोपासक आदि जो सदैव ईश्वर का ध्यान करते हैं और जिन्हें लोभ, मोह, क्रोध, काम से डर लगता है सदैव जागा करते हैं। राजा लोग राज-काज हेतु  उनके सेवक शत्रु के समाचार से चिन्तित होकर जागा करते हैं। विद्या हेतु पण्डित सचेत होकर  और लोभी जन जर जमीन के लालच में  भोगी भोग के लिए, वियोगी विरह में, रोगी रोग के कारण जागते हैं लेकिन तुलसीदास प्रभु राम    जिनके चरित्र में अपनेपन का विस्तार था    के भरोसे सुख से सोता है।


रामजन्मभूमि का संघर्ष बहुत पहले प्रारम्भ हो गया था आज उसका परिणाम हमारे सामने है

जनमानस में रामत्व प्रविष्ट हो रहा है 

दशरथ सुत तिहुं लोक बखाना, राम नाम का मरम है आना। '

कबीर के अनुसार हमें राम की कथा सुनकर रामत्व का अनुभव करना है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मुकेश जी का नाम क्यों लिया राम जी की इच्छा किसका नाम रखा गया जिह्वा पर सरस्वती विराजमान रहती हैं इससे संबन्धित कौन सा प्रसंग आचार्य जी ने सुनाया ex- muslims का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें