दुर्लभं त्रयमेवैतत् देवानुग्रहहेतुकम्।
मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरूषसंश्रय:॥
मनुष्य जन्म, मोक्ष की इच्छा और महापुरुषों का साथ ये तीनों दुर्लभ हैं और देवताओं की कृपा से ही प्राप्त होते हैं
प्रस्तुत है ज्ञान -सरस्वत् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष दशमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 20 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९०५ वां* सार -संक्षेप
1 ज्ञान का समुद्र
अपने दोषों को परिष्कृत करने का प्रयास ही सदाचार है इन सदाचार वेलाओं के माध्यम से आचार्य जी
सुनहु सकल पुरजन मम बानी। कहउँ न कछु ममता उर आनी॥
नहिं अनीति नहिं कछु प्रभुताई। सुनहु करहु जो तुम्हहि सोहाई॥2॥
हे समस्त नगर निवासियों! मेरी बात सुनें । यह बात हृदय में कुछ ममता लाकर मैं नहीं कह रहा हूँ। न यह अनीति की बात है न ही इसमें कुछ प्रभुता है अतः मेरी बातें आप सुन लें और अच्छी लगें तो उस तरह से करते हुए कर्मानुरागी बनें
नित्य प्रयास करते हैं कि हम अपने दोषों का परिष्कार करें
अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन भक्ति सद्संगति में रत हों हम अपने गुणों को पहचानें हम अच्छे भाव पल्लवित करें हम अनुभूति करें कि हमारा जीवन सार्थक है
संपर्क का संयोजन मनुष्य का मनुष्यत्व है
मनुष्य का मनुष्यत्व जब और अधिक ऊपर उठता है तो वह रामत्व में परिवर्तित हो जाता है
मनुष्यत्व का परम ही रामत्व है
राम के रामत्व में शिकायत नहीं मिलेगी
श्रीराम का रामत्व तन परिपुष्ट हो
और मनस् सुशान्त शिव संतुष्ट हो
चित्त का चैतन्य जाग्रत सुष्ठु हो
प्रखर मेधा ज्ञानवान् सुपुष्ट हो
कर्म का उत्साह प्रबल विशिष्ट हो
भाव संयम शौर्य ममता युक्त हो
मति सतत गतिमान् भ्रम भय मुक्त हो
शक्ति मंगलकार्य हेतु प्रयुक्त हो
हमें यह अनुभव करना चाहिए कि हम भी परमात्मा के ही अंश हैं
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥
जिस प्रकार वही परमात्मा मनुष्य रूप धारण कर राम के रूप में आया
जौं केवल पितु आयसु ताता। तौ जनि जाहु जानि बड़ि माता॥
जौं पितु मातु कहेउ बन जाना। तौ कानन सत अवध समाना॥1॥
यह राम का परिवेश है भगवान् राम को उनकी मां का संस्कार मिल रहा है हमारे अन्दर भी रामत्व है तो विचार करने की आवश्यकता है कि हम अपने परिवारों को राम के परिवार जैसा क्यों नहीं बना पाते
मन्दिर के दर्शन मात्र से समाज का सुधार नहीं हो सकता अतः हमें समाज सुधार में सन्नद्ध होना होगा अपने अपने स्थानों घर मोहल्लों बस्तियों में ही हम लोग प्रयासपूर्वक रामात्मक दृष्टि रखते हुए अच्छे भाव उत्पन्न करें छोटे बच्चे की परवरिश कैसी हो उसे स्वावलम्बी कैसे बनाएं लोगों को दुर्व्यसनों से कैसे बचाएं
संस्कारी शिक्षा की आवश्यकता है संगठित रहना समय की मांग है अन्यथा सनातन धर्म को नष्ट करने के असफल कुत्सित प्रयास चलते रहे हैं श्रीराम मन्दिर को नष्ट कर मस्जिद बना दी गई यह दुष्टता है इस प्रकार की घटनाएं अब न हों अतः हम शौर्य प्रमंडित अध्यात्म का आश्रय लें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मुकेश जी को क्या परामर्श दिया भैया अनुराग त्रिवेदी जी भैया अक्षत कृष्णा जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें