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आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष षष्ठी/सप्तमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 2 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *८८७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है स्थिरधी ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष षष्ठी/सप्तमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 2 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण

  *८८७ वां* सार -संक्षेप

1 विचार या संकल्प का पक्का

(कल सोनी ऐंटरटेनमेंट चैनल पर स्वस्तिक प्रोडक्शन्स के बैनर तले श्रीमद् रामायण धारावाहिक प्रारम्भ हुआ
कल इसमें दिखाया गया कि राजा नेमी कैसे दशरथ हुए

केकेय देश के राजा अश्वपति और शुभलक्षणा की कन्या वीराङ्गना ' कैकेई ' राजा नेमी के साथ शम्बर के विरुद्ध युद्ध में इन्द्र की सहायतार्थ गई थींl युद्ध में नेमी के रथ का धुरा टूट गया उस समय कैकेई ने धुरे में अपना हाथ लगाकर रथ को टूटने से बचाया और नेमी युद्ध करते रहे और विजयी हुए)

वाणी परमात्मा का प्रसाद है यदि वैखरी वाणी प्रभावकारिणी हो तो यह सौभाग्य की बात है अतः संयम के साथ इसका प्रयोग करना चाहिए हमें वाणी की वन्दना भी करनी चाहिए
मां सरस्वती की वन्दना में मां सरस्वती

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।
 
शुक्लवर्ण वाली,संपूर्ण चराचर जगत्‌ में व्याप्त, आदिशक्ति, परब्रह्म के विषय में किए गए विचार एवं चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली, सभी भयों को दूर करने वाली, अज्ञान के अंधेरे को मिटाने वाली

हैं

ये वाणी हमारे विवेक की अभिव्यक्ति है
यूट्यूब के एक वीडियो का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने बताया कि निश्चलानन्द सरस्वती जी महाराज के एक शिष्य, जिन्हें अद्भुत वाणी प्राप्त है,बार बार एक ही बात कह रहे थे कि जो शास्त्रसम्मत नहीं है वह नहीं मानना चाहिए

पुराणं सर्व शास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणां स्मृतम् ।

यह शास्त्र ईश्वरप्रदत्त ज्ञान का पल्लवन है इसी ज्ञान का नाम वेद है इसी कारण वेद को अपौरुषेय कहा गया है

हमारे पास शास्त्रीय ग्रंथों का भण्डार है इनमें बहुत से विधि विधान हैं लेकिन
हम इन्हीं अनुसंधानों में रत रहे और शक्ति का संवर्धन नहीं किया तो दुष्ट हावी हो गए इसी कारण अध्यात्म शौर्य प्रमंडित होना ही चाहिए
इस सृष्टि में सत्य के साथ असत्य भी है विकास के साथ विनाश भी है यह सृष्टि एक लीलाभूमि ही है व्यक्ति की कल्पनाओं का विस्तार अनन्त है इसी कारण कहा भी जाता है जो परमात्मा का चिन्तन है वही जीवात्मा का चिन्तन है
परमात्मा को सहयोग नहीं चाहिए लेकिन जीवात्मा को चाहिए
आचार्य जी सदैव यही कामना करते हैं कि हम समाजोन्मुखी राष्ट्रोन्मुखी जीवन जिएं शक्ति भक्ति विश्वास संयम की अनुभूति करते रहें शुद्धि का भी ध्यान रखें जैसे हमारा खानपान शुद्ध हो
शुद्धि हमारे अन्दर शक्ति का प्रवेश करा देती है
हमें मनुष्य का जीवन मिला है हम इसके वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए कुछ समय तो निकालें ही आत्मस्थ होने की चेष्टा करें ध्यान धारणा करें

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने श्री बालेश्वर जी का कौन सा प्रसंग बताया विद्यालय में वार्षिकोत्सव का विस्तार किसके कहने पर हुआ आदि जानने के लिए सुनें