3.1.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष सप्तमी / अष्टमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 3 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *८८८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है स्थिरबुद्धि ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष सप्तमी / अष्टमी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 3 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण

  *८८८ वां* सार -संक्षेप

 1 विचार या संकल्प का पक्का


आचार्य जी का नित्य प्रयास रहता है कि हमारे सुप्त भावों को जाग्रत करें क्योंकि हम अपने लिए सुख शान्ति यश शक्ति की कामना करते हैं
हम स्वयं तो इन सबकी कामना करें अगली पीढ़ी को भी इसे संप्रेषित करें
इस यशस्विता को गौरवमय बनाने हेतु पुरुषार्थ पराक्रम करने के लिए हम उद्यत तो होते हैं लेकिन परेशान हो जाते हैं इन सदाचार संप्रेषणों में हमें इन्हीं परेशानियों के समाधान प्राप्त होते हैं

मनुष्य ने जीवन को इतना अधिक भोगमय बना लिया है कि प्रकृति भी कुपित रहने लगी है
प्रकृति के संसाधनों का अनुचित दोहन हो रहा है जब कि हमारी आर्ष परम्परा कहती है कि त्यागपूर्वक उपभोग करें


ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्‌।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्‌ ॥

इसी उपनिषद् का दूसरा छंद है

कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥

ईश्वर द्वारा रचित इस संसार में कर्म करते हुए ही मनुष्य को सौ वर्ष जीने की इच्छा करनी चाहिए । हे मानव! तुम्हारे लिए इससे भिन्न विधान नहीं है, इस प्रकार कर्म करते हुए ही

सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्।

सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृताः।।


 जीने की इच्छा करने से मानव में कर्म का लेप नहीं होता है
ईशावास्योपनिषद् के दूसरे छन्द को युगभारती की प्रार्थना में सम्मिलित किया जा सकता है
गीता के दूसरे अध्याय में

बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।

तस्माद्योगाय युज्यस्व *योगः कर्मसु कौशलम्*।।2.50।।
पूर्णरूप से भगवद्भक्ति में लीन रहते हुए हम लोग कुशलतापूर्वक काम करते चलें योग का अर्थ है परमात्म तत्त्व से संयुत होना
हम गीता को अपने कार्य व्यवहार में अवतरित करने का प्रयास करें हमें लाभ मिलेगा

समाश्रिता ये पदपल्लवप्लवं
महत्पदं पुण्ययशो मुरारेः ।
भवाम्बुधिर्वत्सपदं परं पदं
पदं पदं यद् विपदां न तेषाम् ॥ ५८


जिन्होंने पुण्यकीर्ति मुकुन्द मुरारि के पदपल्लव की नौका का आश्रय लिया है,क्योंकि वह सत्पुरुषों का सर्वस्व है,उनके लिए यह भव-सागर बछड़े के खुर के गढ़े जैसा है । उन्हें परमपद मिल जाता है और उनके लिए यह संसार कष्टों का निवासस्थान नहीं रहता है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी का नाम क्यों लिया बैरिस्टर साहब ने कश्मीर से आ रही सूचनाओं पर क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की आचार्य जी ने
 गांधी जी के विषय में क्या कहा आदि जानने के लिए सुनें