21.1.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 21 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *९०६ वां* सार -संक्षेप

 सत्य की हो प्राणधारा शौर्य का हो आवरण,

तत्व की अनुभूति उद्भट शक्ति का वातावरण,
अस्त्र-शस्त्रों का सुखद शृंगार हो तन पर सजा,
तभी शिवसंकल्प मय हो जाएगा पर्यावरण।



प्रस्तुत है ज्ञान -दभ्र ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रम संवत् २०८० तदनुसार 21 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
  *९०६ वां* सार -संक्षेप

 1 ज्ञान का समुद्र

शक्ति भक्ति ज्ञान वैराग्य के अद्भुत सामञ्जस्य वाले आचार्य जी का नित्य यह प्रयास,जिससे हम जाग्रत सक्रिय समाजोन्मुखी हो सकें राष्ट्रोन्मुखी भाव को भक्ति में परिवर्तित कर शक्ति प्राप्त कर सकें और हमारा जीवन विकाररहित और पवित्र हो सके भगवान् राम की शक्ति हमारे भीतर प्रविष्ट हो सके ,अद्भुत है

पापान्निवारयति योजयते हिताय. गुह्यं निगूहति गुणान् प्रकटीकरोति । आपद्गतं च न जहाति ददाति काले. सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तःll
 
आचार्य जी का परामर्श है कि इन सदाचारमय विचारों को सुनने के पश्चात् हम अपने विचार भी दें क्योंकि अध्यापन के कारण अध्ययन क्षीण नहीं हो सकता कक्षाध्यापन के अतिरिक्त प्रवचन,व्यवहार,उपदेशात्मक सेवा का भाव भी अध्यापन के प्रकार हैं
हमारे देश की आर्ष परम्परा ने इसी उन्नत तात्विक विधा को पहचाना और वेद का नाम दिया

इस समय एक भावात्मक लहर चल रही है पूरा वातावरण राममय है सारे विभेद भूलकर अब हम रामात्मक जीवन को अपनाने की महत्ता को समझ चुके हैं इसी रामात्मक जीवन को दुष्टों द्वारा नष्ट करने के बहुत से प्रयास होते रहे हैं
पंगु बने समाज में अब कुछ परिवर्तन दिख रहा है

दुष्ट अकबर, जिसे लीपापोती कर अकबर महान बताया गया,के शासन में पंगु बने समाज को जाग्रत करने का काम तुलसीदास ने बखूबी निभाया
'संवत सोलह सौ इकतीसा। करउं कथा हरिपद धरि सीसा।'

अवतारी पुरुष कथावाचक भक्त नरहरिदास ने तुलसीदास की प्रतिभा को पहचाना
 जो पहले से रामभक्त थे
मैं पुनि निज गुर सन सुनी कथा सो सूकरखेत।
समुझी नहिं तसि बालपन तब अति रहेउँ अचेत॥ 30(क)॥
तो
तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥
भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥


तो भी जब गुरु नरहरिदास जी ने बार-बार रामकथा
बुध बिश्राम सकल जन रंजनि। रामकथा कलि कलुष बिभंजनि॥
रामकथा कलि पंनग भरनी। पुनि बिबेक पावक कहुँ अरनी॥


 कही, तब अपनी बुद्धि के अनुसार वह कुछ समझ में आई। वही अब मेरे द्वारा भाषा में रची जाएगी, जिससे मेरे मन को संतोष मिले

रामकथा जब भीतर व्याप्त हो जाती है तो अपार शक्ति आ जाती है

निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।
सकल मुनिन्ह के आश्रमन्हि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥9॥


रामकथा कलि कामद गाई। सुजन सजीवनि मूरि सुहाई॥
सोइ बसुधातल सुधा तरंगिनि। भय भंजनि भ्रम भेक भुअंगिनि॥


रामकथा कलियुग में सारे मनोरथों को पूर्ण करने वाली कामधेनु गाय है और सज्जनों हेतु सुंदर संजीवनी जड़ी है। धरती पर यही अमृतनदी है, जन्म और मरण के फेर वाले भय का नाश करने वाली और भ्रमरूपी मेढ़कों को खाने हेतु सर्पिणी है।

तुलसी प्रभु राम को विष्णु अवतार नहीं कहते थे वो उन्हें परब्रह्म परमेश्वर का अवतार कहते थे

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मुकेश जी भैया पवन जी का नाम क्यों लिया औरास में आज क्या है जानने के लिए सुनें