प्रस्तुत है देवद्र्यञ्च् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 25 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९१० वां* सार -संक्षेप1 देवोपासक
सदाचार वेलाओं की सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब इनके व्यक्त विचारों को हम व्यवहार में लाने का प्रयास करें
जैसा भगवान् राम ने किया
निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।
कहा और कर दिखाया
जिन विकारों का हम अनुभव कर रहे हैं उन्हें सबसे पहले अपने भीतर से दूर करें आत्मबोध की आवश्यकता है अन्याय की अनदेखी न करें
आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम दशम ग्रंथ के हिन्दी संस्करण को अवश्य खरीदें और हिन्दू, मुस्लिम के साथ जैन बौद्ध सिख शब्दों को प्रयोग करना बन्द कर दें
जातिवादी विकार को मन से निकालने की चेष्टा करें
सिख तो वह पंथ है जिसने त्याग शौर्य तप पराक्रम संयम साधना संकल्प से सनातन धर्म की रक्षा की, लेकिन सनातन धर्म को नष्ट करने की दुष्टों द्वारा की गई गहरी साजिशों के तहत उसी को हिन्दू धर्म से अलग कर दिया गया
हम ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र नहीं हैं
शौर्य प्रमंडित अध्यात्म को अपनाने की जगह नपुंसक अहिंसा को हमारे यहां महिमामण्डित कर दिया गया और कहा गया कि हमारे घरों में शस्त्रों की कोई आवश्यकता नहीं है
धन को बहुत अधिक महत्त्व दिया गया जीवन को घुन के जैसा बना दिया गया
लेकिन हम सनातनी हिन्दू धर्म के उपासक हैं हम भारत माता के संकल्पशील योद्धा और सेवक हैं सैन्य शक्ति की आवश्यकता को हम अनुभव करते हैं
वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः
इस समय सारा देश राममय हो गया है लेकिन हमें दुष्टों उदरोपासकों से बहुत सचेत रहना होगा जाग्रत रहना होगा हमें संयम के साथ कर्म के लिए प्रवृत्त होना होगा
श्रीरामचरित मानस में तुलसीदास जी ने राम के रामत्व को बहुत अधिक प्रखर बनाया
शिव जी और राम जी के बीच अद्भुत समन्वय स्थापित किया क्योंकि उस काल में शैव वैष्णव में झगड़े चलते थे
उत्तरकांड में शिव जी द्वारा
निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह
वाले संकल्प को पूरा करने वाले
भगवान् राम की की गई स्तुति अद्भुत है
जय राम रमारमनं समनं। भव ताप भयाकुल पाहि जनं।।
अवधेस सुरेस रमेस बिभो। सरनागत मागत पाहि प्रभो।।1।।
दससीस बिनासन बीस भुजा। कृत दूरि महा महि भूरि रुजा।।
रजनीचर बृंद पतंग रहे। सर पावक तेज प्रचंड दहे।।2।।
महि मंडल मंडन चारुतरं। धृत सायक चाप निषंग बरं।।
मद मोह महा ममता रजनी। तम पुंज दिवाकर तेज अनी।।3।।
हे राम ! हे रमारमण ! हे जन्म-मरण के कष्ट का नाश करने वाले ! आपकी जय हो, आवागमन से भयभीत इस सेवक की रक्षा कीजिए। हे अवधपति! हे सुरों के ईश ! हे रमापति ! हे विभो! मैं शरण में आया व्यक्ति आपसे यही माँगता हूँ कि हे प्रभो! मेरी रक्षा कीजिए॥
हे दस शीश और बीस भुजाओं वाले दुष्ट रावण का विनाश करके पृथ्वी के सारे कष्टों को दूर करने वाले श्री राम जी! राक्षस समूह रूपी पतंगे आपके बाण रूपी अग्नि के प्रचण्ड तेज से भस्म हो गए॥
आप महि मंडल के अत्यधिक सुंदर आभूषण हैं, आपने श्रेष्ठ बाण, धनुष, तरकस धारण किया है। मद, मोह,ममता रूपी रात्रि के अंधकार समूह के नाश हेतु आप सूर्य के तेजोमय किरण समूह हैं॥
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया
खड़ी बोली के गद्य का प्रारंभिक रूप उपस्थित करने वाले चार प्रमुख गद्यलेखक हैं लल्लूलाल, सदल मिश्र,मुंशी सदासुखलाल तथा सैयद इंशाउल्ला खाँ
और आचार्य जी ने भैया मनीष जी डा अमित जी डा पंकज जी डा प्रकाश जी का नाम क्यों लिया, संयोगवशात् मैं हिन्दू हूं किसने कहा था जानने के लिए सुनें