प्रस्तुत है पलंकष -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 26 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९११ वां* सार -संक्षेप1 राक्षसों का शत्रु
सदाचार वेला के माध्यम से प्राप्त विचारों, जैसे अपने भीतर बैठी मूर्ति के प्रति हम अनजान न रहें आत्मबोधोत्सव मनाते रहें गीत सजाने को अन्तर्मन की मधुरिम आवाज चाहिए अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए पूरी तरह उत्साहित रहें मनोयोग से कोई भी काम करें अनुभूति करें कि मैं राम हूं , को समाज में प्रचारित और प्रसारित करने के अनेक उदाहरण सामने आ रहे हैं,जैसे बैच 1988 के भैया रवीन्द्र गुप्त जी ( समाजसेवी और पेट्रोल पंप स्वामी, राठ, हमीरपुर ) ने एक वैचारिक गोष्ठी में कहा
*हम कभी गुलाम नहीं रहे*
यह एक अत्यन्त उत्साहपूर्ण कार्य का उदाहरण है जो सदाचारवेलाओं की सफलता को प्रमाणित कर रहा है विचार व्यवहार में आ रहे हैं
गुलाम वे होते हैं जो मन से बुझ जाते हैं
लेकिन बहुत से अत्याचार सहने के बाद भी जिनमें किसी भी शैली में किसी भी विश्वास का आश्रय लेकर हिन्दुत्व का भाव विचार बना हुआ था वे कभी गुलाम नहीं रहे
भारत के कण कण में अंकित , गौरव गान हमारा है !
हम हिंदू ऋषियों के वंशज , हिंदुस्तान हमारा है !!
हम अपने तत्त्व सत्त्व को विस्मृत कर जाएं इसके लिए हमारी आस्था पर प्रहार किया गया हमारे पूजास्थलों को नष्ट किया गया हमारे साहित्य को नष्ट किया गया
हम अपने तत्त्व सत्त्व को कैसे भूल सकते हैं तभी तो राममन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा के समाचार से पूरा देश रामात्मक हो गया इसके पीछे की साधना भी अद्भुत है अवर्णनीय है
आत्मबोध जाग्रत करती ये पंक्तियां देखिये
केवल प्राणों का परिरक्षण जीवन नहीं हुआ करता है
जीवन जीने को दुनिया में अनगिन सुख सुर साज चाहिए......
यह जीवन रचनाकर्ता की एक अनोखी अमर कहानी
इसमें रोज बिगड़ते बनते हैं दुनिया के राजा रानी
जीवन सुख जीवन ही दुःख है जीवन ही है सोना चांदी
जीवन ही आबाद बस्तियां जीवन ही जग की बरबादी
जीवन तीन अक्षरों का अद्भुत अनुबन्ध हुआ करता है
केवल प्राणों का..
हकीकत राय (१७१९–१७३४) जिसने हिन्दू धर्म के अपमान का प्रतिकार किया और जबरन इस्लाम स्वीकारने के स्थान पर मौत को गले लगा लिया
उनकी पत्नी भी उसकी मृत्यु के साथ सती हो गई ,माता पिता ने पुत्र के वियोग में प्राण त्याग दिए । धर्म की रक्षा हेतु इस बालक का बलिदान सदैव स्मरणीय रहेगा
वीर हकीकत राय का जन्म १७१९ में पंजाब के सियालकोट नगर में हुआ था। वे अपने व्यापारी पिता भागमल के इकलौते पुत्र थे
हिन्दू जीवन रामात्मक जीवन है
रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥
अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा॥1॥
नाथ न रथ नहि तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥
लेकिन जब यह भाव मन में रहता है
सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥2॥
तब दुविधा नहीं रहती है
भाव से भरा व्यक्ति जब आगे आगे चलता है तो उत्साह उसके पीछे पीछे चलता है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने उन्नाव विद्यालय के किस कार्यक्रम की चर्चा की भैया नीरज जी ने कैसा गुरुकुल प्रारम्भ किया है लखनऊ की बैठक का वार्षिक अधिवेशन से क्या सम्बन्ध है महाराष्ट्र में सर का क्या अर्थ है जानने के लिए सुनें