*९१२ वां* सार -संक्षेप
1 सर्वग (going everywhere )
आइये प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में
सदाचार का अर्थ है सत् का आचरण
स्वयं सदाचार का पालन करते हुए नित्य आचार्य जी हमारा मार्गदर्शन करते हैं यह हमारा सौभाग्य है
सदाचार वेलाओं के माध्यम से प्राप्त विचारों को यदि हम व्यवहार में लाते हैं तो निश्चित रूप से हम उन्नति करेंगे
हमें आत्मबोध आत्मशोध के लिए कुछ क्षण निकालने होंगे अपने अन्दर बैठे विग्रह को जानना होगा बाधाओं की उपेक्षा करते हुए बदली और घाम का ध्यान न रखते हुए अपने लक्ष्य के प्रति सजग रहना होगा
हमारा लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
साधना कभी न व्यर्थ जाती,चलकर ही मंजिल मिल पाती
चरैवेति चरैवेति
साधना वही है जो किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सततता से परिपालित की जाती है
हम अपने तत्त्व सत्त्व को विस्मृत न करें भय भ्रम से दूर रहें हम अपने शिल्पी हैं इसे जान लें रामत्व की अनुभूति करें
रामो विग्रहवान् धर्मः
हम अपने कर्तव्य का सदैव ध्यान रखें कर्तव्य किसी भी प्रकार का हो सकता है जिस कर्तव्य से हम संयुत हैं उसे पूर्ण करने से यश की भी प्राप्ति होती है
उस कर्तव्य के साथ अनुशासन और व्यवस्था भी संयुत रहती है
किसी भी तरह से करने और व्यवस्थित ढंग से करने में अन्तर है
अपनी क्षमता के अनुसार कार्य करें
चरन चोंच लोचन रंग्यो, चले मराली चाल ।
क्षीर नीर विवरन समय बक उघरत तेहि काल ।।
पैरों, चोंच और ऑंखों को रंगने मात्र से हंस जैसी चाल चलने से बगुला कभी हंस नहीं हो सकता । दूध का दूध और पानी का पानी करने की बात पर बगुले की पोल खुल जाती है । (हंस में यह क्षमता है कि वह दूध और पानी मिला होने पर उसमें से दूध को अलग कर देता है )
देश और समाज हमारे लिए सोचे इसके लिए आवश्यक है हम भी देश और समाज के लिए सोचें
जब शिक्षा केवल परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए और अंक नौकरी प्राप्त करने के लिए होते हैं तो समझ लेना चाहिए समाज में लकवा मार रहा है
आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम एक दूसरे पर खीजें नहीं अपने कर्तव्य को ध्यान में रखें