प्रस्तुत है नीलाम्बर -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 28 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९१३ वां* सार -संक्षेप1 राक्षसों का शत्रु
आइये प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में
सदाचार का अर्थ है सत् का आचरण
स्वयं सदाचार का पालन करते हुए विष पीते हुए हमें अमृत प्रदान करने की भावना के साथ नित्य आचार्य जी हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है
हमें लक्ष्य करके उत्साहित प्रेरित करने का यह कार्य अप्रतिम है
विविध विषयों पर आधारित इन वेलाओं का श्रवण हमारे समय का सदुपयोग है
सदाचार वेलाओं के माध्यम से प्राप्त विचारों को यदि हम व्यवहार में लाते हैं तो निश्चित रूप से हम सफल होंगे
हमें अपने अन्दर बैठे विग्रह का बोध होना चाहिए बाधाओं की उपेक्षा करते हुए अपने लक्ष्य के प्रति जागरूक रहना होगा
हमारा लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
चरैवेति चरैवेति
हम अपने तत्त्व सत्त्व को विस्मृत न करें भय भ्रम से दूर रहें रामत्व की अनुभूति करें अपने ग्रंथों को जानें
कुछ समय आनन्दमयी स्थिति में जाने के लिए महापुरुषों की जीवनियां देखें रामचरित मानस का पाठ करें उसमें तत्त्व और कथा दोनों है भागवत् का दशम स्कन्ध देखें स्वाध्याय भी करें
मन में आए भावों पर विचार कर क्रिया करें
मनुष्यत्व की अनुभूति कर मनुष्य के जीवन के लिए हमारे ऋषियों ने बहुत चिन्तन किया
जैसे
बृहदारण्यक उपनिषद: 2/4/5) से
आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्योमैत्रेयात्मनी व अरे दर्शनेन श्रवणेन मत्या विज्ञानेन सर्वमिदं विदितम्।
आत्मा आत्मा है आत्मा परमात्मा का अंश है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया
गृहस्थ आश्रम पर अन्य सारे आश्रम आधारित हैं
गृहस्थ आश्रमी सबके लिए करता है
मां इसका सटीक उदाहरण है
विधि व्यवस्था के अनुसार यदि हम चलते हैं तो सम्मानित होते हैं
मोरेहु कहे न संसय जाही। विधि विपरीत भलाई नाहीं।
होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढावै साखा
विधि विधान को भारतीय जीवन दर्शन से ही प्राप्त किया जा सकता है अन्यत्र से नहीं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने दक्षिणेश्वर की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें