29.1.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 29 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *९१४ वां* सार -संक्षेप 1 राक्षसों का शत्रु

 निराशा हो न क्षणभर और आशा की न आशा हो

परम पुरुषार्थमय विश्वास की आजन्म भाषा हो
रहे हे देव! मेरा सत् समर्पण राष्ट्र -हित में ही
न अपने स्वार्थ हित आजन्म कोई भी पिपासा हो l


प्रस्तुत है हुण्ड -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 29 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९१४ वां* सार -संक्षेप
1 राक्षसों का शत्रु



आइये प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में

स्वयं सदाचार का पालन करते हुए नित्य आचार्य जी हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है
हमें लक्ष्य करके उत्साहित प्रेरित करने का यह कार्य अप्रतिम है
सदाचार वेलाओं के माध्यम से प्राप्त विचारों को यदि हम व्यवहार में लाते हैं तो निश्चित रूप से हम सफल होंगे
आचार्य जी का प्रयास है कि हमें अपने अन्दर स्थित विग्रह का ज्ञान हो
मन और बुद्धि का सामञ्जस्य बैठाकर हमारे अन्दर भाव उत्पन्न हों हम यज्ञमयी संस्कृति वाले

अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।

यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः।।3.14।।

भारत देश में जन्मे हैं तो सौभाग्यशाली होने की अनुभूति करें
बाधाओं की उपेक्षा करते हुए हम अपने लक्ष्य को साधें
हमारा लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
राष्ट्र -हित समाज -हित में निःस्वार्थ भाव से हम अपना सत् समर्पण करें
हम अपने तत्त्व सत्त्व को विस्मृत न करें और भय भ्रम से दूर रहते हुए पुरुषार्थ करें

हमें सुख सुविधा सम्मान की चाह न हो ऐसा उद्घोष जब हमारे अन्दर से किसी समय होवे वे क्षण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं यह परमात्मा की अद्भुत लीला है


निज कबित्त केहि लाग न नीका। सरस होउ अथवा अति फीका॥
जे पर भनिति सुनत हरषाहीं। ते बर पुरुष बहुत जग नाहीं॥6॥

रसपूर्ण हो या अत्यन्त फीकी, अपनी कविता किसे अच्छी नहीं लगती?

जग बहु नर सर सरि सम भाई। जे निज बाढ़ि बढ़हि जल पाई॥
सज्जन सकृत सिंधु सम कोई। देखि पूर बिधु बाढ़इ जोई॥7

किन्तु जो दूसरे की रचना को सुनकर (दूसरे की भाषा भाव कार्य व्यवहार आचरण से प्रभावित होकर) हर्षित होते हैं, ऐसे अच्छे व्यक्ति संसार में बहुत नहीं हैं और जो अल्प मात्रा में हैं वे पुरुष -रत्न हैं
अपनी चीज सभी को अच्छी लगती है यही अपनापन जब तात्विक रूप में पहुंच जाता है तो हम आत्म्बोधोत्सव मनाने लगते हैं
भाग छोट अभिलाषु बड़ करउँ एक बिस्वास।
पैहहिं सुख सुनि सुजन सब खल करिहहिं उपहास॥8॥

मेरा भाग्य बहुत क्षुद्र है और इच्छा बहुत बड़ी , फिर भी मुझे पूर्ण विश्वास है कि इसे सुनकर सभी सज्जन सुख प्राप्त करेंगे और दुष्ट हँसी उड़ावेंगे॥


बड़ा कमज़ोर है आदमी,
अभी लाखों हैं इस में कमी

फिर भी परमात्ना में वह क्षमता है कि कमजोर लोगों से बड़ा से बड़ा काम करा लेता है

पर तू जो खड़ा, है दयालु बड़ा,
तेरी कृपा से धरती थमी

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि अद्वैत जगत का अमूल्य रत्न है परिव्राजकाचार्य स्वामी शंकरानन्द द्वारा रचित आत्मपुराण
और
उपनिषदों का लैटिन में अनुवाद किया महान फ्रांसीसी भाषाशास्त्री और प्राच्यविद् अब्राहम हयासिंथे एंक्वेटिल-डुपेरॉन (1731-1805 ई.) ने
जर्मन दार्शनिक आर्थर शोपेनहावर (1788-1860 ) ने कहा था कि उपनिषद् मानवबुद्धि की सर्वोच्च अभिव्यक्ति हैं
भैया पङ्कज श्रीवास्तव जी को आचार्य जी ने क्या परामर्श दिया दाराशिकोह का उल्लेख क्यों हुआ Oupnekhat क्या है जानने के लिए सुनें