30.1.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 30 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *९१५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है हित ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष पंचमी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 30 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण

  *९१५ वां* सार -संक्षेप
 1 परोपकारी

स्वयं सदाचारी रहते हुए हमारे आदर्श के रूप में आचार्य जी नित्य हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है
हमें लक्ष्य करके उत्साहित प्रेरित करने का यह कार्य अप्रतिम है
सदाचार वेलाओं के माध्यम से प्राप्त विचारों को यदि हम व्यवहार में लाते हैं तो निश्चित रूप से हमारी सफलता निश्चित है
आचार्य जी का प्रयास है कि हमें परमात्मतत्त्व की अनुभूति हो बाधाओं से बिना भयभीत हुए हम अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित रखें
हमारा लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
राष्ट्र -हित समाज -हित हेतु निःस्वार्थ भाव से हमारा समर्पण हो
हम अपने तत्त्व सत्त्व को विस्मृत न करें आदर्श चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय विचार व्यवहार में रत हों कर्तव्य पालन में दोषों को परस्पर संवाद करते हुए दूर करें
शक्ति का अर्जन कर चलते रहें चलते रहें हमारे अन्दर मूल विषयों के तत्त्व को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न करना ही सदाचार है
आज की वेला में आचार्य जी उपनिषदों की महत्ता बता रहे हैं
औपनिषदिक शिक्षा यही बताती है कि हम प्रपंचों से दूर रहकर संसार में रहें
कमल के पत्ते की तरह संसार में रहना

स जीवति यशो यस्य कीर्तिर्यस्य स जीवति।
अयशोऽकीर्तिसंयुक्तः जीवन्नपि मृतोपमः॥

केवल वही व्यक्ति जीवित कहलाता है जिसने यश प्रतिष्ठा कीर्ति प्राप्त की हो। अप्रतिष्ठित और बदनाम व्यक्ति जीवित रहते हुए भी मृतक के समान है
संसार में जिस व्यक्ति का अधिक से अधिक लोग सम्मान करें यशस्विता उसी को प्राप्त है

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ॥
क्षुरस्य धारा की तरह संसार में चलना है
और
सहजं कर्म कौन्तेय सदोषमपि न त्यजेत्। सर्वारम्भा हि दोषेण धूमेनाग्निरिवावृता:॥ 18-48॥ (गीता )
धुएं को सहते हुए उस अग्नि का हम सेवन करें

उपनिषदों में इसी प्रकार की शिक्षा दी गई है इनमें उपमान विधि सूत्र विधि प्रश्नोत्तर विधि आदि है
क्या सही है क्या गलत है इसका विवेचन है
आचार्य जी ने नचिकेता की ओर संकेत करते हुए आत्म संलाप विधि समझाई
स्वामी विवेकानन्द ने बहुत अध्ययन किया उसे पचाया और फिर उसे अपने ढंग से प्रस्तुत किया वे विदेश में जाकर कहते हैं
(उपनिषदों पर दिए गए भाषण के कुछ अंश आचार्य जी ने सुनाए)
उपनिषदों की भाषा और भाव की गति सरल है उनमें जटिलता नहीं है अवनति के चिह्न नहीं हैं
उपनिषद् कहते हैं हे मानव तेजस्वी बनो वीर्यवान् बनो दुर्बलता को त्यागो
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी की वकालत की चर्चा क्यों की भैया पंकज श्रीवास्तव जी भैया पुनीत जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें