31.1.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष पंचमी /षष्ठी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 31 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *९१६वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है शुक्रशिष्य -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष पंचमी /षष्ठी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 31 जनवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण

  *९१६वां* सार -संक्षेप
 1 राक्षसों का शत्रु

सदाचार वेलाओं के माध्यम से प्राप्त सदाचारमय विचारों को यदि हम व्यवहार में लाते हैं तो निश्चित रूप से हमारी सफलता निश्चित है
हमें लक्ष्य करके उत्साहित प्रेरित करने का यह कार्य अप्रतिम है
तत्त्वज्ञ आचार्य जी का प्रयास है कि हम बाधाओं से बिना भयभीत हुए अपने लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित रखें
हमारा लक्ष्य है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
राष्ट्र -हित समाज -हित हेतु निःस्वार्थ भाव से हमारा समर्पण हो
हम अपने तत्त्व सत्त्व को विस्मृत न करें इन वेलाओं के तात्विक विषयों में अपनी रुचि जाग्रत करें
बहुत ज्ञान अर्जित करने पर भी दम्भ अहंकार से दूर रहें मानसिक और शारीरिक शुद्धि के साथ साधनाओं जैसे अध्ययन स्वाध्याय आदि में रत हों

भाव विचार और क्रिया की त्रिवेणी अद्भुत है भाव बनने के बाद विचार आते हैं और उसके उपरान्त जब क्रियाएं प्रारम्भ होती है तो उन क्रियाओं के साथ संसार संयुत हो जाता है
भाव से ही संसार उत्पन्न होता है विचार में भी संसार संयुत है
कभी विचार कुछ होता है और व्यवहार कुछ अलग होने लगता है यह संसार का स्वरूप और स्वभाव है संसार में सब कुछ है और कुछ भी नहीं है लेकिन संसार का संसारी पुरुष यदि अपने पुरुषत्व की कुछ क्षणों के लिए ही अनुभूति कर लेता है तो वह संसार के रहस्य को जानने के लिए बहुत जिज्ञासु हो जाता है

इस जिज्ञासा में अनेक बार उसके मन में उद्विग्नता भी आ जाती है ऐसी उद्विग्नता भक्ति के क्षेत्र में बहुत भक्तों में देखने को मिलती है
आज कल इन वेलाओं में उपनिषदों पर चर्चा हो रही है इनमें बहुत कुछ है ये अपरिमित ज्ञान का स्रोत हैं इनमें अध्ययन की कई विधियां हैं ईशावास्य उपनिषद् का पहला छंद अपनी प्रार्थना में भी है

ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।
 तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ।।
भगवान् शंकराचार्य ने ग्यारह उपनिषदों का भाष्य किया है जिनमें

तत्त्व जिज्ञासुओं के कल्याणार्थ एक ही पुस्तक में गीता प्रेस ने नौ उपनिषदों (ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, श्वेताश्वतर) को एक साथ संगृहीत किया है।

ईशादि नौ उपनिषद् – सजिल्द (सानुवाद, शांकरभाष्य)

और इसके अतिरिक्त
छान्दोग्य उपनिषद् और
बृहदारण्यक उपनिषद् हैं
उपमान विधि वाले छान्दोग्य उपनिषद् की आचार्य जी ने चर्चा की

आयोदधौम्य के आश्रम में ओपवेशिक गौतम के पुत्र आरुणि, वसिष्ठ कुलोत्पन्न व्याघ्रपाद के पुत्र उपमन्यु तथा वैद शिक्षा प्राप्त करते थे। धौम्य बड़े परिश्रमी थे और शिष्यों से भी बहुत काम लेते थे। पर उनके शिष्य गुरु के प्रति इतना आदर एवं श्रद्धा रखते थे कि वे कभी उनकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते थे l
आरुणि अत्यन्त सिद्ध योगी थे पानी न रुकने पर वे लेट गए ऋषि ने उनका नाम उद्दालक रख दिया
आचार्य जी ने उपमान विधि बताई आरुणि के पुत्र श्वेतकेतु की चर्चा करते हुए कि एक छोटे बीज से बहुत बड़ा वृक्ष बन जाना ही ईश्वरत्व है

इसके अतिरिक्त भारत की महत्ता कैसे समझ में आयेगी आदि जानने के लिए सुनें