हो प्रयास विशुद्धधर्मी, और शुभ वातावरण। ।
हे प्रभू ऐसी कृपा करना कि ये सब साथ हो।
बल रहे तन में जनम भर, मनस् दीनानाथ हो। ।
कर्म शुभ्र विचार शुभ हो भाव ऊर्जस्वित रहे।
आत्म पथ पर चरण बढ़ते रहें, कोई कुछ कहे। ।
प्रस्तुत है प्रवत्स्यत् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 1फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९१७ वां* सार -संक्षेप
1 यात्रा पर जाने के लिए तैयार
सदाचार वेलाओं के माध्यम से प्राप्त सदाचारमय विचारों को व्यवहार में लाने पर निश्चित रूप से हमारी सफलता निश्चित है
हमें लक्ष्य करके उत्साहित प्रेरित करने का आचार्य जी का यह कार्य अप्रतिम है इन वेलाओं का लक्ष्य है कि हमारा परिष्कार हो हम बाधाओं से भयभीत न हों राष्ट्र -हित समाज -हित हेतु निःस्वार्थ भाव से हमारा समर्पण हो हम अपने तत्त्व सत्त्व को विस्मृत न करें
जिस सनातन धर्म में हम लोग जन्मे हैं वह अत्यन्त दिव्य है अत्यन्त अद्भुत है हम संस्कारी मनुष्य हैं
धर्म हमारा आन्तरिक विकास है धर्म से च्युत होना गलत है
ब्राह्मण द्विज विप्र श्रोत्रिय को परिभाषित करता यह छंद देखिए
जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेय:संस्कारैर्द्विज उच्चते।
विज्ञया याति विप्रत्वं त्रिभिः श्रोत्रिय उच्यते ll
ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने वाले व्यक्ति को ब्राह्मण कहा जाता है संस्कारित होने पर वह व्यक्ति द्विज हो जाता है यह द्विजत्व यज्ञोपवीत संस्कार में मिलता है
वेदाभ्यासी को विप्र कहा जाता है
और जिसमें तीनों गुण हों वह श्रोत्रिय होता है
इसी प्रकार हमारे यहां सात प्रकार के स्नान हैं
1. मान्त्र स्नान- मन्त्रों से मार्जन करना
जैसे मन्त्र
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्राभ्यन्तरः शुचि।।
द्वारा
2.आग्नेय स्नान- अग्नि की भस्म पूरे शरीर में लगाना जिसे भस्म स्नान भी कहा जाता है।
3.भौम स्नान- पूरे शरीर में मिटटी लगाने को भौम स्नान कहते हैं
4.वायव्य स्नान- गाय के खुर की धूलि लगाने को वायव्य स्नान कहते हैं
5.मानस स्नान-
विष्णु भगवान् के नामों को स्मरण करते हुए बैठ जाने को मानस स्नान कहते हैं
6. वारूण स्नान- सामान्य जल से स्नान करने को वारूण स्नान कहते हैं
7.दिव्य स्नान- सूर्य की किरणों में वर्षा के जल से स्नान करना दिव्य स्नान कहलाता है
आज कल हम लोग उपनिषदों के विषय में जान रहे हैं
उपनिषद् वैदिक साहित्य का अन्तिम भाग है इसे वेदान्त भी इसी कारण कहते हैं
उपनिषद् भारतीय आध्यात्मिक चिंतन के मूलाधार हैं , भारतीय आध्यात्मिक दर्शन स्रोत हैं। ये ब्रह्मविद्या हैं, जिज्ञासाओं के ऋषियों द्वारा खोजे हुए उत्तर हैं, वे चिंतनशील ऋषियों की ज्ञानचर्चाओं का सार हैंl
आचार्य जी ने बारह उपनिषदों का उल्लेख किया यद्यपि ये हजारों में थे
उपनिषद् के भावों को समझने के लिए हमें अपना चिन्तन सही करना होगा
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया शिवेन्द्र सिंह जी भैया संदीप शुक्ल जी भैया पवन जी सुखई माली काका का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें