*८९२ वां* सार -संक्षेप
1 फुर्तीला
तरपन होम करहिं बिधि नाना। बिप्र जेवाँइ देहिं बहु दाना॥
तुम्ह तें अधिक गुरहि जियँ जानी। सकल भायँ सेवहिं सनमानी॥4॥
जो अनेक प्रकार से तर्पण हवन आदि करते हैं, ब्राह्मणों को भोजन कराकर बहुत सारा दान देते हैं और जो गुरु को हृदय में परमात्मा से भी अधिक बड़ा जानकर सर्वभाव से सम्मान कर उनकी सेवा में रत रहते हैं
तथा भावाभियान के लिए संकल्पित हैं ऐसे हम राम कृष्ण और शिव की भूमि में जन्मे राष्ट्र -भक्तों उदयाचल के उपासकों को गहन गम्भीर वाणी द्वारा आचार्य जी सांसारिक व्यस्तताओं में रहते हुए भी नित्य प्रेरित करते हैं दूरस्थ शिक्षा का यह अद्भुत प्रयास है और यह हमारे सौभाग्य की बात है
मनुष्यत्व की अनुभूति कराना, अपने साहित्य की अद्भुत अभिव्यक्तियों के दर्शन कराना, तात्विक विषय को सरल रूप में प्रस्तुत करना,शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की महत्ता को बतलाना रामत्व की अनुभूति कराना हमें आत्महीनता से दूर कराना यह अनुभूति कराना कि परमात्मा हमारे अन्दर ही है तो भय और भ्रम से दूर रहें
आनन्द की अनुभूति कराना चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय निदिध्यासन में हमें रत कराना अपनी शक्ति भक्ति बुद्धि पर हम विश्वास बनाए रखें यह संकल्प कराना आचार्य जी का उद्देश्य रहता है
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।। क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति।।
कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र १४)
उठो, जागो, वरिष्ठ ज्ञानी पुरुषों को पाकर उनसे बोध प्राप्त करो। छुरी की तेज धार पर चलकर उसे पार करने के समान दुर्गम है यह मार्ग – ऐसा ऋषिगण कहते हैं
उठो जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक रुको नहीं
को स्वामी विवेकानन्द मेघ - निर्घोष स्वर में बोलते थे
हमें यह लक्ष्य जानना चाहिए
हम कौन हैं हमारा कर्तव्य क्या है हम मनुष्य के रूप में जन्म लेने बाद संसार में कैसे रहें और संसार को कैसे समझें
परमात्मा कौन है
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥
आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥
परमात्मा का तत्व क्या है परमात्मा के स्वरूप और शक्ति का ज्ञान हमारे साहित्य में कराया गया है
हमारे साहित्य में ऐसे गम्भीर विचार प्रचुर मात्रा में हैं
हमारी मूल जीवनशैली प्राकृतिक और सहज है
हम प्रकृति के साथ तादात्म्य स्थापित करते हैं
इसलिए कोरोना पर हमने और देशों की अपेक्षा बेहतर नियन्त्रण पा लिया
आचार्य जी ने भारतीयt जीवनशैली और पश्चिमी जीवनशैली में विस्तार से अन्तर बताया
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अशोक त्रिपाठी जी का नाम क्यों लिया गुड़हल के फूल की चर्चा क्यों हुई आदि जानने के लिए सुनें