*८९३ वां* सार -संक्षेप
1 खेटिन् = दुराचारी
तर्क कुतर्क करने वाले दुराचारियों
.. अस अधम नर ग्रसे जे मोह पिसाच।
पाषंडी हरि पद बिमुख जानहिं झूठ न साच॥
से सावधान रहना,मनुष्यत्व की अनुभूति कराना, हमारे भीतर छिपी शक्तियों से हमारा परिचय कराना, संपूर्ण विश्व का हित करने की भावना संजोए भारतीय साहित्य की अद्भुत अभिव्यक्तियों के दर्शन कराना, अत्यधिक कठिन तात्विक विषय को सरल रूप में प्रस्तुत करना,शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की महत्ता को बतलाना, रामत्व की अनुभूति कराना, हमें आत्महीनता से दूर कराना, हमें स्वावलम्बी बनाना,चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन निदिध्यासन में हमें रत कराना, अविद्या की अति से उपजी हमारी व्याकुलता को समाप्त करने के उपाय बताना, पैसा कमाने के साथ यश की प्राप्ति के उपाय बताना,आनन्द की अनुभूति कराना आचार्य जी का उद्देश्य रहता है
बुद्धिमान् मनुष्य को क्या करना चाहिए कठोपनिषद् में इसका उपाय बताया जा रहा है
कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र १३
यच्छेद्वाङ्मनसी प्राज्ञस्तद्यच्छेज्ज्ञान आत्मनि।
ज्ञानमात्मनि महति नियच्छेत्तद्यच्छेच्छान्त आत्मनि ॥
इसका अन्वय इस प्रकार है
प्राज्ञः वाक् मनसी यच्चेत् तत् ज्ञाने आत्मनि यच्छेत् ज्ञानं महति आत्मनि नियच्छेत् तत् शान्ते आत्मनि यच्छेत् ॥
अर्थात्
प्रज्ञावान् मनुष्य अपनी वाणी को मन में नियन्त्रित करे फिर उस मन को ज्ञान -स्वरूप आत्मा में फिर ज्ञान को महान् आत्मा में और उसे पुनः उस आत्मा में नियन्त्रित रखे जो शान्त-स्वरूप है
इसके बाद
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।
क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ॥
मोक्ष का मार्ग आनन्द का मार्ग है
आनन्द वह अवस्था है
जिसमें कोई कष्ट कोई व्यथा कोई उलझन नहीं है हम स्वस्थ तब हैं जब हमें लगे कि शरीर हमारे साथ है ही नहीं
हमारे यहां योग मार्ग और भक्ति मार्ग दोनों में इसका विस्तार है
हमारा वैदिक ज्ञान औपनिषदिक ज्ञान अद्भुत है जिसे अवतारी पुरुष तुलसीदास जी ने अत्यंत सरल रूप में प्रस्तुत कर दिया भगवान् राम को रोम रोम में बसा दिया
कहहु पुनीत राम गुन गाथा।
अति आरति पूछउँ सुरराया। रघुपति कथा कहहु करि दाया॥
प्रथम सो कारन कहहु बिचारी। निर्गुन ब्रह्म सगुन बपु धारी॥
मां पार्वती अत्यन्त आर्तभाव से पूछती हैं -आप कृपया मुझ पर दया करके राम की कथा कहिए।
पहले यह बताइये जिससे निर्गुण ब्रह्म सगुण रूप धारण करता है
पुनि प्रभु कहहु राम अवतारा। बालचरित पुनि कहहु उदारा॥
कहहु जथा जानकी बिबाहीं। राज तजा सो दूषन काहीं॥
तब
हर हियँ रामचरित सब आए। प्रेम पुलक लोचन जल छाए॥
श्रीरघुनाथ रूप उर आवा। परमानंद अमित सुख पावा॥
शिव जी की तरह हम भी इसी आनन्दमय अवस्था में पहुंच जाएं तो हमें आनन्द समझ में आ जाएगा
इस समय राममय वातावरण है राम हमारे आराध्य हैं आराध्य और आराधक का यह भाव अत्यन्त गहन है क्षुरस्य धारा पर चलने के समान
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥
आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥
इन्द्रियों में नियन्त्रण हो तो यह सब समझ में आयेगा
अपने को अपनी नजर से देखें तो आनन्द मिलेगा संसार की नजर से देखेंगे तो कष्ट दूर नहीं होगा
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आचार्य आनन्द जी से संबन्धित कौन सा प्रसंग बताया
थ्वारा पढ़ा तो हरतेगा ज्यादा पढ़ा तो घरतेगा का क्या अर्थ है एक फिल्म के तीन शो किसने देखे आदि जानने के लिए सुनें