2.2.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष सप्तमी /अष्टमी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 2 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *९१८ वां* सार -संक्षेप

 संसार समस्या है तो हम हैं समाधान

परमात्मशक्ति की रचना के शिवसंविधान,
हम मानव मनु की कथाविधा के नायक हैं
रीतियों प्रथाओं के चिंतक उन्नायक हैं।
इसलिए निराशा को त्यागें उत्साह भरें
सविता से अँजुरी भर प्रकाश की माँग करें।


प्रस्तुत है रामणीयक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष सप्तमी /अष्टमी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 2 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
  *९१८ वां* सार -संक्षेप
 1 सुखद


सदाचार वेलाओं के माध्यम से प्राप्त सदाचारमय विचारों को व्यवहार में लाने पर हमारी सफलता निश्चित है
हम आत्मीयों को लक्ष्य करके उत्साहित प्रेरित करने का आचार्य जी का यह कार्य अप्रतिम है इन वेलाओं का लक्ष्य है कि हमारा परिष्कार हो हमारी निराशा दूर हो मनु की कथाविधा के नायक हम बाधाओं से भयभीत न हों राष्ट्र -हित समाज -हित हेतु निःस्वार्थ भाव से हमारा समर्पण हो प्रेम और विश्वास के आधार पर शक्ति उत्पन्न कर राष्ट्र को फलने फूलने में अपने को समाधान के रूप में प्रस्तुत करें हम अपने तत्त्व सत्त्व को विस्मृत न करें हम अपने भावों पर विश्वास करना सीखें रीतियों प्रथाओं के उन्नायक बनें परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए विजय की कामना करें नई पीढ़ी को वेद आरण्यक उपनिषद् ब्राह्मण ब्रह्मसंहिता गीता मानस
महाभारत के माध्यम से संस्कारित करने का उसमें इन महाग्रंथों के प्रति रुचि जाग्रत करने का हम लोग प्रयास करें
कर्म विकर्म अकर्म धर्म मर्म को जानें प्रश्न अवश्य उठाएं ताकि जिज्ञासा समाप्त न हो

जो व्यक्ति ज्यादा सांसारिक जीवन जीते हैं वे लोग रिश्ते तोड़ने में देर नहीं लगाते
लेकिन कुछ ऐसे लोग जो संसार से इतर भी अपना समय लगाते हैं बारंबार विचार करते हुए सम्बन्ध जोड़ते हैं


उत्तरकांड में कलियुग का वर्णन करते हुए तुलसीदास कहते हैं


कुलवंति निकारहिं नारि सती। गृह आनहिं चेरि निबेरि गती॥
सुत मानहिं मातु पिता तब लौं। अबलानन दीख नहीं जब लौं॥2॥

कुलवती स्त्री को पुरुष घर से निकाल देते हैं और घर में दासी को ले आते हैं। सुत अपने माता पिता को तभी तक मानते हैं, जब तक स्त्री का मुख नहीं दिखाई देता



ससुरारि पिआरि लगी जब तें। रिपुरूप कुटुंब भए तब तें॥
नृप पाप परायन धर्म नहीं। करि दंड बिडंब प्रजा नितहीं॥3॥

जब से ससुराल प्रिय लगने लगी, तब से कुटुम्बी शत्रु की तरह हो गए। राजा लोग पाप करने में लग गए , धर्म से विमुख हो गए वे प्रजा को नित्य बिना अपराध के भी दंड देकर उसकी दुर्गति किया करते हैं


शिष्ट सभ्य संसार में जहां वास्तविक आनन्द है गुरुत्व और शिष्यत्व की प्रस्तुति है गुरुत्व और शिष्यत्व का फलना फूलना अनिवार्य है अन्यथा राक्षसत्व आ जाता है


ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।

रामानन्द का कबीर के प्रति ऐसा प्रेम झलका जिसे कबीर कभी नहीं भूले

सतगुरु हम सूँ रीझि करि, एक कह्या प्रसंग।

बरस्या बादल प्रेम का, भीजि गया सब अंग॥

आजकल पूरा वातावरण राममय हो गया है भाव प्रतिफलित हो रहा है यह भारत देश की मूल प्रकृति है

इसके अतिरिक्त भैया विवेक भागवत जी से
विद्याञ्चाविद्याञ्च यस्तद्वेदोभयं सह।
अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते ॥
को आचार्य जी ने कैसे संयुत किया भैया अनुराग त्रिवेदी जी की चर्चा क्यों की गौशालाओं की दुर्दशा पर हम लोगों को क्या करना चाहिए आदि जानने के लिए सुनें