प्रस्तुत है बर्हिस् -स्तिभि ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 10 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९२६ वां* सार -संक्षेप1 प्रकाश का समुद्र
आइये प्रवेश करें प्रभात की इस सदाचार वेला में
प्रभात का आनन्द लगातार हमें तब प्राप्त होगा जब प्रभात की किरणें प्रकाश की किरणें हमारे अन्दर प्रवेश करेंगी
इनके प्रवेश के लिए हमारा व्यक्तिगत उत्थान होना चाहिए जिसके लिए हमें अपने शरीर को स्वस्थ रखना होगा शरीर स्वस्थ और प्रसन्न रहेगा तो आनन्द में वृद्धि होगी
व्यक्तिगत चिन्तन के साथ हम परिवार, परिवेश, समाज, राष्ट्र और विश्व का चिन्तन सतत करने लगें क्योंकि
हमारा लक्ष्य ही है
राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
तो
साधो सहज समाधि भली। गुरुप्रताप जहँ दिनसे जागी, दिन दिन अधिक चली।।1
स्वाभाविक रूप से हमें कर्तव्य बोध होता रहे तो
यही मनुष्यत्व है आपस में संयुत रहने का हमारा भाव अत्यधिक अद्भुत है
यह भाव भारतीय चिन्तन में रचा बसा है इसीलिए कहा गया है
मातृ देवो भव। पितृ देवो भव। आचार्य देवो भव। अतिथि देवों भवः ।'
तैत्तिरिय उपनिषद्
अर्थात् माता, पिता , आचार्य और अतिथि को देवता के समान मानकर उनके साथ व्यवहार करो।
यह सम्मान देने का भाव भारतीय संस्कृति की उच्चता है जिसका आधार आत्मीयता है
हम लोग भावों और विचारों को समझने की चेष्टा करें शान्तचित्त होकर कुछ समय चिन्तन के लिए निकालें इसी चिन्तन से हम ध्यान की अवस्था में पहुंच सकते हैं और हमें आनन्द की प्राप्ति हो सकती है संसार का सार आनन्द में है
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः।।3.8।।
अकर्म से कर्म श्रेष्ठ है
सबका अपना अपना नियत कर्म है
हम अपने को समझते हुए अपनों को समझाते रहें कि सत्य क्या है
अपनी भूमिका का परिपालन प्रसन्नतापूर्वक करते रहें अपनी राह न भूलें अर्थात् कर्तव्य बोध होता रहे समाज को हमारा चरित्र व्यवहार आदर्श लगे यह प्रयास करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने सरौंहां के हनुमान मन्दिर की चर्चा क्यों की
After Nehru, Who by Welles Hangen की चर्चा ? क्यों की सितम्बर २०२४ के वार्षिक अधिवेशन के लिए क्या सुझाव दिया आदि जानने के लिए सुनें