11.2.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 11 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण

 बाँच दूँ प्रिय आपने जैसी लिखी जीवन -कथा

या ह्रदय की तलहटी में छिपी छेड़ूँ निज व्यथा
बुद्धि की उलझन उलझती जा रही है क्या करूँ
हे विधाता कुछ सुझाओ प्रियजनों के भ्रम हरूँ


प्रस्तुत है मानधन ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 11 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९२७ वां* सार -संक्षेप
1 सम्मान रूपी धन से समृद्ध

राष्ट्र के कार्य के लिए अपनी अपनी आहुति डालने हेतु संकल्पसिद्ध होने के लिए और गिलहरी योगदान देने के लिए , राष्ट्र -सेवा के बीज को वटवृक्ष में बदलने के लिए,कादर्य त्यागने के लिए, शक्ति शौर्य के अर्जन दर्शन के लिए,अपने भ्रम दूर करने के लिए भावनाओं के दृश्य बनाने के लिए आइये प्रवेश करें आज की वेला में

राष्ट्र के लिए तप त्याग तपस्या समर्पण सेवा करना कष्ट व्यथा सहना तिल तिल गलकर समाहित हो जाना ही राष्ट्रभक्ति है

कभी न पराजित होने वाला यह राष्ट्र त्यागियों तपस्वियों मनीषियों की धरती है समय समय पर कोई न कोई तपस्वी उत्पन्न होता रहता है और एक उदाहरण प्रस्तुत कर चल जाता है
भगवान् की यह लीलाभूमि है
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
तप त्याग सेवा समर्पण को शतगुणित करने वाले एकात्म मानव जीवन के दर्शन को मानने वाले और उस पर चलने वाले
पं दीनदयाल जी भी एक ऐसे ही तपस्वी यज्ञकर्ता थे जिनकी ११ फरवरी १९६८ को दुष्टों ने हत्या कर दी थी
आचार्य जी उस समय पूर्णकालिक कार्यकर्ता प्रचारक थे विभाग की बैठक थी जालौन झांसी बांदा हमीरपुर नामक चार जिलों का विभाग था झांसी केंद्र था श्री कृष्ण दास जी विभाग प्रचारक थे माताटीला बांध देखने का कार्यक्रम बना और आचार्य जी कुछ लोगों के साथ बांध देखने पहुंच गए
तभी एक हृदयविदारक सूचना मिली विवादहीन एकात्म मानववाद के प्रणेता तत्त्वदर्शी मनीषी अमर दीनदयाल जी की हत्या हो गई थी जहां जहां यह सूचना पहुंची वहां भोजन नहीं बना किसी भी राष्ट्रभक्त ने भोजन नहीं किया और दीनदयाल जी की राह पर चलने का संकल्प लिया
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा का नाम क्यों लिया श्री सरदेसाई जी के पिता जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें