प्रबल इच्छा जहां पर सिद्धि का संकल्प हो जाती
जगत की जल्पना बस सिर्फ एक विकल्प रह जाती हैवहां पुरुषत्व संयम शक्ति युक्त सनाथ हो जाता
कि मानव मंत्र बनकर मुक्तिपथ की राह पा जाता
प्रस्तुत है औजस्य -धनाधार ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 13 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९२९ वां* सार -संक्षेप
1 सामर्थ्य का खजाना
प्रचुर मात्रा में सामर्थ्य शक्ति की अनुभूति कर ताकि अतिचार को देखने पर हम अपनी छाती को अड़ा लें और हमारा केसरिया निशान अंबर तक फहरे आइये प्रवेश करें आज की वेला में
अपने भावों को केवल सांसारिक परिस्थितियों में लीन करना उचित नहीं है मनुष्यत्व की अनुभूति न कर अपने जीवन को भयग्रस्त भ्रमग्रस्त रोगग्रस्त चिन्ताग्रस्त बना लेना किसी भी प्रकार से ठीक नहीं है
इसीलिए जन जन को आर्य बनाने का संकल्प करते हुए आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं कि हमारे साथ यह घटित न हो हम समस्याओं से विचलित न हों हम प्रसन्न रहें लेकिन हम इतने मस्त न रहें कि रावण जैसे राक्षस विकसित होने लगें
ब्रह्मत्व त्यागकर वैभव के प्रति इतनी अनुरक्ति न हो जाए कि हमारे अन्दर राक्षसत्व आ जाए हम सात्विक कर्मों का विस्तार करें लेकिन सात्विकता में शक्ति को विलीन न करें संयमित साधना करते हुए पुरुषार्थ पराक्रम के कीर्तिमान रचें नए अनुष्ठान करें रामत्व की अनुभूति करें
वह रामत्व कि
अस्थि समूह देखि रघुराया। पूछी मुनिन्ह लागि अति दाया॥3॥
निसिचर हीन करउँ महि भुज उठाइ पन कीन्ह।
सन् २०१० की परिस्थितियों से अपने भावों को अवशोषित करते हुए आचार्य जी कहते हैं
भारत महान भारत महान
जग गाता था गा रहा नहीं
गाएगा फिर पूरा जहान..
भारत जिसने सिद्ध किया कि शून्य में भी तत्त्व है
आचार्य जी सीताराम के उद्घोष की संपूर्णता की सार्थकता सिद्ध करते हुए रामराज्य में शक्ति के निर्वासन पर अत्यन्त भावुक होते हुए लिखते हैं
वसुधा फिर चढ़ी परीक्षा पर
उठ गए सवाल तितिक्षा पर..
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने लाहौर के विषय में क्या बताया मोक्ष का क्या अर्थ है आदि जानने के लिए सुनें