14.2.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष पञ्चमी (वसन्त पञ्चमी )विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 14 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *९३० वां* सार -संक्षेप

 समय कोई परिस्थिति कोइ भी हो मत करो चिंता,

कि, ये सब व्यर्थ की बातें समय कैसा कहाँ बीता,
सतत जाग्रत रहो निज आज पर अब पर नजर रक्खो,
यही तो कर्म का अध्याय सिखलाती हमें गीता।

प्रस्तुत है यष्टृ ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष पञ्चमी (वसन्त पञ्चमी )विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 14 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
  *९३० वां* सार -संक्षेप
1 पूजा करने वाला

आचार्य जी का प्रयास रहता है कि सांसारिक समस्याओं से जूझते हुए स्वाभाविक भौतिक आकर्षण से हम स्वयं को मुक्त करने का प्रयास करें त्याग सेवा तप की परिपाटी का पालन करें अभ्यास और वैराग्य द्वारा अपने चञ्चल मन को नियन्त्रित करें जैसा गीता में कहा गया है


अर्जुन जब कहते हैं

चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम्।

तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।।6.34।।

यह मन चंचल, प्रमथन स्वभाव का और बलवान् दृढ़ है, मुझे उसका निग्रह करना वायु जैसा अति दुष्कर लगता है

तो भगवान् कृष्ण कहते हैं

अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।।6.35।।

उसे अभ्यास और वैराग्य के द्वारा वश में किया जा सकता है।।

कठोपनिषद् में वाजश्रवा के पुत्र नचिकेता और यमराज के बीच अद्भुत संवाद है । बालक नचिकेता की शंकाओं का समाधान करते हुए यमराज सांसारिक भोगों में लिप्त जीवात्मा और उसके शरीर के मध्य का संबंध स्पष्ट करते हैं

आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु ।
बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च ।।
(कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र ३)

इस जीवात्मा को तुम रथ का स्वामी समझ लो शरीर को उसका रथ, बुद्धि को सारथी और मन को लगाम समझो ।

इंद्रियाणि हयानाहुर्विषयांस्तेषु गोचरान् ।
आत्मेन्द्रियमनोयुक्तं भोक्तेत्याहुर्मनीषिणः ।।
(कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र ४)

मनीषियों, विवेकी पुरुषों ने इंद्रियों को इस शरीर-रथ को खींचने वाले अश्व कहा है, जिनके लिए इंद्रिय-विषय विचरण के पथ हैं, इंद्रियों तथा मन से युक्त इस आत्मा को वे शरीर रूपी रथ का भोग करने वाला कहते हैं ।

आज वसन्त पञ्चमी है जो बुद्धि, ज्ञान, कला की देवी सरस्वती की पूजा आराधना के दिन के रूप में मनाया जाता है।आज हम संकल्प करें कि शिक्षाधन की अनदेखी नहीं करेंगे सुविचारित शिक्षा से ही भारत भा -रत होगा

आज हकीकत राय का बलिदान दिवस भी है
हकीकत राय
श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।

स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।।
का प्रत्यक्ष उदाहरण बन गए हैं
गुरदासपुर जिले में, हकीकत राय को समर्पित एक मंदिर बटाला में स्थित है।
विभाजन के बाद लाहौर के अतिरिक्त उनकी एक और समाधि होशियारपुर जिले के "ब्योली के बाबा भंडारी" में स्थित है। यहाँ लोग बसंत पंचमी के दौरान इकट्ठा हो कर हकीकत राय को श्रद्धाञ्जलि देते हैं।


अपने धर्म के प्रति यह भावबोध नई पीढ़ी में यदि हम डालते रहेंगे तो वह भ्रमित नहीं रहेगी दुविधाओं में नहीं झूलेगी
हम उन्हें केवल भोग के लिए तैयार न करें अपनी साधना को पश्चिम के नाम न करें शौर्य पराक्रम से अपने विश्वास को न डिगाएं हम अपनी भूमिका ध्यान में रखें समाज को परिशुद्ध करने का संकल्प लें सतत जाग्रत रहें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने अपनी रचित एक कविता सुनाई (१७-०९-२०११को रचित )

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