प्रस्तुत है वैदुषि -धनाधार ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 15 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९३१ वां* सार -संक्षेप1 ज्ञान का खजाना
महान लोगों के रास्ते पर चल रहे असामान्य आचार्य जी नित्य अच्छे भाव विचार देकर यह प्रयास करते हैं कि उन्हें ग्रहण कर हम वर्तमान को संभालते हुए *साधु सदन सुक सारीं* अध्ययनरत हों स्वाध्याय करें समाजोन्मुखी बनें यशस्विता प्राप्त करें वैभवसम्पन्न बनें दुष्टों की उपेक्षा करें
खल सन कलह न भल नहिं प्रीती।। उदासीन नित रहिअ गोसाईं। खल परिहरिअ स्वान की नाईं।।
हम ईस्वर अंस जीव अबिनासी चेतन अमल सहज सुख रासी इस जागृति के द्योतक जड़ चेतन गुन दोषमय जगत में जाग्रत रूप में अवस्थित हैं लेकिन बहुत सारे रूपों वाली माया के वश में हो जाते हैं
इसलिए
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां
महाजनो येन गतः स पन्थाः ॥
मनुष्यत्व की परम्परा देने वाला कर्म के सिद्धान्त को समझाने वाला हमारा देश विश्व में अद्वितीय है वह अभागा ही कहा जाएगा जिसको लगता है यहां कुछ भी नहीं है हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारा जन्म भारत में हुआ है हमारे देश में महान लोगों की कभी कमी नहीं रही न अभी है और न ही रहेगी इनके प्रयत्नों से विचारों से बहुत सारे संकटों संघर्षों को झेलने के बाद भी हम जीवित जाग्रत हैं और प्रयास करते रहते हैं कि आगे संघर्ष उपस्थित न हो सकें
हमें अच्छे कर्म करने चाहिए कर्म का सिद्धान्त अनेक जन्मों में प्रतिफलित होता है आचार्य जी ने वह कथा सुनाई कि किस कारण धृतराष्ट्र के सत्कर्म क्षीण होने पर उसे अपने सौ पुत्र गंवाने पड़े
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने सहज बाबा का नाम क्यों लिया किसमें स्थूलत्व है UAE की चर्चा क्यों हुई आदि जानने के लिए सुनें