17.2.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 17 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *९३३ वां* सार -संक्षेप

 जहां श्रम शक्ति सेवा साधनामय प्रेम होता है

जहां निज देश के प्रति प्रेम निष्ठा नेम होता है
जहां अपनों परायों की सही पहचान होती है
जहां चर्चा कथा में पूर्वजों की शान होती है
वहां हरदम सुमंगल गीतमय व्यवहार होता है
कि हर दिन दिव्य मंगलमय मधुर त्यौहार होता है

प्रस्तुत है वरेण्य ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 17 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
  *९३३ वां* सार -संक्षेप
1प्रमुख

समय अत्यन्त गम्भीर है अपनों और परायों की पहचान आवश्यक है जिनमें भारत के प्रति प्रेम निष्ठा है वो अपने है ऐसे गम्भीर समय में हमें हर दिशा में अपनी दृष्टि रखनी होगी संसार में कार्यों की कमी नहीं हैं उनको बिना स्पृहा के हम सेवा भाव से करें इसकी आचार्य जी इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से प्रेरणा देते हैं अपने हर दिन को मंगलमय बनाने के लिए हमें इनको सुनना चाहिए
अपनी भावुकता को शक्ति में परिवर्तित करें
अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें अवरोधों की चिन्ता नहीं करनी चाहिए जिस प्रकार भगवान् राम ने अपने लक्ष्य को ध्यान में रखा
संसार का हित करने वाले श्रीरामचरित मानस का सुन्दर कांड अद्भुत है जिसमें भगवान् राम के अद्भुत स्वरूप का वर्णन करते हुए इसका प्रारम्भ इस प्रकार तुलसीदास जी करते है

शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं
ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदांतवेद्यं विभुम् ।
रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं
वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूड़ामणिम् ॥ १ ॥

नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये
सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा ।
भक्तिं प्रयच्छ रघुपुङ्गव निर्भरां मे
कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च ॥ २ ॥

शान्त,शाश्वत , अप्रमेय अर्थात् प्रमाणातीत ,अनघ अर्थात् निष्पाप, निर्वाण रूपी परम शान्ति प्रदान करने वाले, ब्रह्मा, शिव और फणीन्द्र अर्थात् शेष जी से निरन्तर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, सुरों में सबसे बड़े, माया के कारण मनुष्य रूप में दिखने वाले, सारे पापों को हरने वाले, करुणा - आकर अर्थात् करुणा की खान , रघुवंश में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगत् के ईश्वर की मैं वंदना करता हूँ

रघुपति जी! मैं सत्य बोलता हूँ और आप सबके अंतरात्मा ही हैं अर्थात् सब कुछ जानते ही हैं, कि मेरे हृदय में दूसरी कोई स्पृहा नहीं है। हे रघुकुल पुङ्गव अर्थात् रघुकुल में श्रेष्ठ ! मुझे अपनी निर्भरा भक्ति
(परमात्मा सब अच्छा ही करता है) दे दीजिए और मेरे मन को काम आदि दोषों से दूर करिए

आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त भैया मनीष कृष्णा भैया गोपाल जी भैया नीरज जी भैया वीरेन्द्र श्री धर्मपाल जी की चर्चा क्यों की खीर डे का प्रसंग क्यों आया आचार्य जी ने C O को फोन क्यों किया
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