तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम।
जब लगि भजत न राम कहुँ सोक धाम तजि काम॥46॥जलते जीवन के प्रकाश में अपना जीवन तिमिर हटाएं
उस दधीची की तपः ज्योति से एक एक कर दीप जलाएं
प्रस्तुत है कार्यचिन्तक ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 18 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९३४ वां* सार -संक्षेप
1 दूरदर्शी
हम चाहते तो हैं कि
बरु भल बास नरक कर ताता। दुष्ट संग जनि देइ बिधाता॥
ऐसे तो नरक में रहना ही अच्छा है, लेकिन विधाता दुष्ट की संगति कभी नहीं दे
संसार है तो हमें दुष्टों मूर्खों की संगति करनी पड़ती है
किन्तु हम सज्जनों की संगति द्वारा शक्ति बुद्धि विवेक विचार प्राप्त करें
और इन्हें प्राप्त कर हम अपने शरीर के विकारों से व्याकुल नहीं होंगे सदाचारमय विचारों को ग्रहण कर उन्हें आचरण में लाकर अपने जीवन को उन्नत बनाएं सिंहवृत्ति से जिएं शरीर का उपयोग करें उपभोग नहीं सांसारिक व्यस्तता के साथ आध्यात्मिक व्यस्तता द्वारा जीवन में संतुलन बनाएं अंधेरे को भगाने का संकल्प लें सिद्धि तक का संकल्प लें सज्जनों के आत्मीय बनें आत्मीयता संसार का सबसे बड़ा धन है सबसे बड़ा कल्याणकारी मन्त्र है
श्रुतिः स्मृतिः सदाचारः स्वस्य च प्रियमात्मनः l
एतच्चतुर्विधं प्राहुः साक्षाद्धर्मस्य लक्षणम् । । 2/12
इस संसार और संसारेतर जगत् को पहचानने की क्षमता ही श्रुति या वेद है जिसे जानना, उस ज्ञान की समझदारी अर्थात् हमारी स्मृति के आधार पर एक नियमावली का बना होना , उस नियमावली का हमारे आचरण में प्रकट होना और इन सबका हमारे आत्म को संतुष्ट करना आनन्दित करना धर्म -लक्षण का चतुष्टय है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया शीलेन्द्र जी और भैया विक्रम जी के पिता जी श्री राम किशोर जी की चर्चा क्यों की श्री राम कुमार जी का उल्लेख क्यों हुआ श्री जयवीर जी का आचार्य श्री जगपाल जी से क्या सम्बन्ध है मलय भैया जी की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें