3.2.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 3 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *९१९ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है विभी ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 3 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण

  *९१९ वां* सार -संक्षेप
 1 निर्भय

सदाचार वेलाओं के माध्यम से प्राप्त सदाचारमय विचारों को व्यवहार में लाने पर हमारी सफलता निश्चित है
हमें लक्ष्य करके उत्साहित प्रेरित करने का आचार्य जी का यह कार्य अप्रतिम है इन वेलाओं का लक्ष्य है कि हमारा परिष्कार हो मानवधर्मी साधना में रत हम मनुष्य बाधाओं से भयभीत न हों राष्ट्र -हित समाज -हित हेतु निःस्वार्थ भाव से हमारा समर्पण हो महाअंशी के अंश हम अपने तत्त्व सत्त्व को विस्मृत न करें अपने शरीर को चुस्त दुरुस्त रखने का प्रयास करें
तुलसीदास जी एक बहुत तात्विक बात कहते हैं

तुलसिदास प्रभु ! कृपा करहु अब , मैं निज दोष कछू नहिं गोयो ।
डासत ही गइ बीति निसा सब , कबहुँ न नाथ ! नींद भरि सोयो ॥४॥
बहुत कुछ किया फिर भी ध्यान की उस परावस्था में पहुंच ही नहीं पाए

जन्म जन्म मुनि जतनु कराहीं। अंत राम कहि आवत नाहीं॥
जासु नाम बल संकर कासी। देत सबहि सम गति अबिनासी॥2॥
मुनिजन प्रत्येक जन्म में अनेक प्रकार का यत्न करते रहते हैं लेकिन अंतिम समय में उनके मुख से राम का नाम नहीं निकलता वह नाम जिसकी शक्ति से भगवान् शंकर काशी में सबको समान रूप से मुक्ति देते हैं

मम लोचन गोचर सोई आवा। बहुरि कि प्रभु अस बनिहि बनावा॥
बाली का ज्ञान खुल जाता है
हमारा ज्ञान भी खुला है इसलिए हम भी अपने ग्रंथों के प्रति रुचि जाग्रत करें
इनसे हमें बहुत बल मिलता है अतः इन्हें प्राप्त करने की चेष्टा हमें करनी ही चाहिए अपने जीवन की शैली का निर्धारण करें हम कभी गुलाम नहीं थे हम संघर्षरत रहे थे हम कभी गुलाम नहीं होंगे इसे विश्वासपूर्वक कहते रहें
अपने संगठन का स्मरण करते हुए आश्वस्त रहें कि अकेले नहीं हैं मार्गान्तरित लोगों को मार्ग (अपना धर्म )पर लाने का भी प्रयास करें
धर्म की रक्षा हेतु दुष्टों का नाश करें मन को मलिन न करें अन्याय न करें भ्रष्ट आचरण से युक्त कार्य न करें स्वार्थ से दूर रहें

स्थानभ्रष्टा न शोभन्ते दन्ताः केशा नखा नराः ।
इति संचिन्त्य मतिमान्न स्वस्थानं न परित्यजेत् ll
नर जब अपने कर्तव्यों से च्युत हो जाता है तो वह स्थानभ्रष्ट हो जाता है
इसलिए अपने कर्तव्यों का पालन अवश्य करते रहें
समाज के प्रति भी हमारा कर्तव्य है


कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥

इस संसार में कर्म करते हुए ही मनुष्य को सौ वर्ष (या उससे अधिक )जीवित रहने की इच्छा करनी चाहिए
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने चीं का उल्लेख क्यों किया भैया अरविन्द तिवारी जी का नाम क्यों लिया कल होने वाली लखनऊ बैठक के विषय में क्या कहा आदि जानने के लिए सुनें