भाव की भाषा जहां व्यवहार के पथ पर चली है
और सात्विक शक्ति के चैतन्य की झंकृति मिली हैवहीं सन्निधि का अनोखा प्रेममय संबल मिला है
सहज प्रेमी साथियों का हर तरह का बल मिला है
इसी बल को ज्ञानियों ने संगठन का नाम देकर
और मानव को विधाता ने यशस्वी काम देकर
जगत के झंझा झकोरों पर विजय का पथ दिखाया
और मानव को मनन चिन्तन भरा जीवन सुझाया
प्रस्तुत है अनुपस्कृत ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 20 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९३६ वां* सार -संक्षेप
1 जिसकी बुद्धिमत्ता में कोई संदेह न किया जा सके
जितना ही हम संकुचित होंगे उतनी ही हमारी क्षमताएं कम होती जाएंगी
जो संगठित रूप में रहते हैं वही सफल और यशस्वी होते हैं जगत् के झंझावातों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं
*"सङ्घे शक्ति: कलौ युगे।"*
संगठन शक्ति विश्वास सहयोग आत्मीयता परिवारभाव है
संगठित होने से समस्याओं के समाधान आसानी से निकल आते हैं हम युगभारती संगठन के सदस्य हैं आपस में हममें से प्रत्येक व्यक्ति
ज्योत से ज्योत जगाते चलो,
प्रेम की गंगा बहाते चलो,
हम सभी को संगठित जाग्रत सचेत चैतन्ययुक्त रहना चाहिए आत्मीयता के साथ रहना चाहिए जिम्मेदार व्यक्तियों को तैयार करने का निश्चय करना चाहिए हमें रुचि के अनुसार कार्यभार लेना चाहिए देश और समाज के लिए जीने का संकल्प लेना चाहिए
हमारा लक्ष्य है
राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
उर में है यदि आग लक्ष्य की पंथ स्वयं आयेगा
मनुष्य चिन्तन विचार योजना कर्म विवेक है वह केवल खाने पीने का पुतला नहीं है
मनुष्य तू बड़ा महान है, भूल मत, हाँ मनुष्य तू बड़ा महान है
तू जो चाहे पर्वत, पहाड़ों को फोड़ दे,
तू जो चाहे नदियों के, रुख को भी मोड़ दे
तू जो चाहे माटी से, अमृत निचोड़ दे,
तू जो चाहे धरती को, अंबर से जोड़ दे
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने लखनऊ अधिवेशन के विषय में क्या बताया कोलकाता वाले कौन से भैया की चर्चा हुई आचार्य जी किनको चिट्ठी लिखा करते थे संगठन नष्ट न हो इसके लिए आचार्य जी ने क्या सुझाव दिया जानने के लिए सुनें