प्रस्तुत है निरहंकृति ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 25 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९४१ वां* सार -संक्षेप1 विनीत
महादेवी वर्मा की एक कविता का अंश है
पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला
लेकिन प्रायः अपरिचित पंथ के कारण हम भ्रमित भयभीत रहते हैं
यदि हमें आत्मबोध हो जाए तो हम बहुत कुछ करने में सक्षम हो सकते हैं हम बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान कर सकते हैं हमें प्रलय के पश्चात् प्रभात की अपेक्षा रहेगी ही
परमात्म -तत्त्व की क्षणांश भर भी अनुभूति हमें बहुत कुछ करने में सक्षम बना देती है हम केवल उदर भरने के प्राणी नहीं हैं
इसी तत्व सत्व शक्ति भाव को जाग्रत करने के लिए ही आचार्य जी नित्य अपना बहुमूल्य समय हमें देते हैं हमें इसका लाभ उठाना चाहिए आइये संसार की समस्याओं से अपने को अलग करते हुए इस सदाचार संप्रेषण के श्रवण रूपी दर्शन से भाव भाषा विश्वास भक्ति शक्ति द्वारा मनुष्यत्व की अनुभूति करते हुए आगे बढ़ने का अणु से विभु तक की सुन्दर सलोनी यात्रा के आध्वन् हम संकल्प ले लें
अपनी जिज्ञासाओं को शमित करने का इससे अच्छा उपाय और क्या हो सकता है
संसार समस्या है तो हम हैं समाधान
स्रष्टाकर्ता के जगपालन के विधिविधान
हम अणु से विभु तक की यात्रा के राही हैं
हम सृजन -प्रलय के द्रष्टा और गवाही हैं
पर आत्मबोध से वंचित हम बेचारे हैं
लहरें गिनते रहते हम नदी किनारे हैं
अपनापन संसार का आनन्द है अपनेपन के विस्तार के कारण ही पूरी वसुधा को अपना कुटुम्ब मानते हैं अपनेपन का संकोच हमें राक्षस रूपी बोझ बना देता है
हमारा सनातनत्व अद्भुत है
विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह । अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते ll
जो व्यक्ति तत् को इस रूप में जानता है कि वह विद्या और अविद्या दोनों ही है, वो अविद्या से मृत्यु को पार कर विद्या से अमरत्व का आस्वादन करता है।
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम उपनिषदों से अपना अध्ययन प्रारम्भ करें आचार्य जी ने तैत्तिरीय उपनिषद् की चर्चा की
आगामी लखनऊ अधिवेशन, जिसके अब २०९ दिन शेष हैं,की चर्चा करते हुए आचार्य जी ने कुछ सुझाव दिए
शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलम्बन सुरक्षा नमक चतुष्टय के पारगामी विद्वानों जानकारों को हम लोग आमन्त्रित करें और हम लोग भी इन विषयों का अध्ययन करें और नई पीढ़ी का मार्गदर्शन करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया नीरज कुमार जी भैया अरविन्द तिवारी जी भैया हरिकान्त जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें