26.2.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन कृष्ण पक्ष द्वितीया /तृतीया विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 26 फरवरी 2024

 


परम प्रिय चिन्तक मनस्वी 'आत्म' को विस्तार दो
मनस् के भावों विचारों को जगत् -व्यवहार दो
गुप्त ऊर्जा से नरतन मिला अति दिव्य जो
उस जयस्वी श्रेष्ठ साधन को विजय की धार दो
कर्म का चैतन्य जागे धर्म पर विश्वास हो
मर्म नरतन का समझ में रहे जब तक श्वास हो
हो सदा अनुभव कि हम मां भारती के लाल हैं
देशभक्ति के सहोदर और द्रोहियों के काल हैं

प्रस्तुत है आगारदाहिन् -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन कृष्ण पक्ष द्वितीया /तृतीया विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 26 फरवरी 2024

(विद्यालय के पूर्व छात्रों को इस प्रकार संगठित किया जाए कि वे न केवल मातृ- विद्यालय से प्राप्त संस्कारों को अक्षुण्ण बनाएं रहें, वरन् कुछ ऐसे रचनात्मक कार्य भी करें जिनसे समाज को लाभ भी पहुंचे.... फलतः फाल्गुन कृष्ण ३ सं २०३४ तदनुसार २६ फरवरी १९७८ को इस विचार को तरुण -भारती "अब युग -भारती "की स्थापना के द्वारा मूर्त रूप दे दिया गया)



 का सदाचार संप्रेषण
  *९४२ वां* सार -संक्षेप
1 घर फूंक व्यक्तियों का शत्रु
(अर्थात् देशद्रोहियों का काल )

असीम ऊर्जा से सम्पन्न जयस्वी श्रेष्ठ साधन के रूप में हमें जो मनुष्य का शरीर मिला है उसकी हमें अनुभूति होती रहनी चाहिए
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है, वह नर नहीं नर पशु निरा और मृतक समान है

हम मां भारती के लालों अर्थात् राष्ट्र -भक्तों का अपने सनातन धर्म से विश्वास कभी डिगे नहीं इसका प्रयास करते हुए बिना फल की इच्छा किए हमें कर्मरत होना चाहिए एकात्म मानववाद के प्रणेता पं दीनदयाल जी की साधना जो राष्ट्र -द्रोहियों के कारण अधूरी रह गई को पूर्ण करने का प्रण करना चाहिए क्योंकि दीनदयाल जी की हत्या एक बहुत बड़ा भावनात्मक अपघात था

हमारा बोध -वाक्य है

" प्रचण्ड तेजोमय शारीरिक बल, प्रबल आत्मविश्वास युक्त बौद्धिक क्षमता एवं निस्सीम भाव सम्पन्ना मनः शक्ति का अर्जन कर अपने जीवन को निःस्पृह भाव से भारत माता के चरणों में अर्पित करना ही हमारा परम साध्य है l "

आत्मशक्ति आत्मविश्वास और आत्मविस्तार के लिए आइये हम भी नीराजना करें जाग्रत उत्साहित संगठित होने का निश्चय करें समाज पर अमिट छाप छोड़ें स्वार्थ से दूर रहें आशा की किरणें बिखेरें
हमारे यहां की शिक्षा वह संस्कार है जिससे हम संसार के रहस्य को जानकर संसार में रहने का सलीका सीखते हैं
हमें यह ज्ञान प्राप्त होता है कि हम कौन हैं
एकात्मता का अनुभव हम मनुष्यों को ही होता है परमात्मा की अन्य रचनाओं को नहीं
हमें यह भी चिन्ता करनी चाहिए कि यज्ञमण्डप से उठकर हम श्मसान कैसे पहुंच गए

हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी

भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां
फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां
संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी भैया अजीत पांडेय जी भैया शशि शर्मा (१९७५ बैच ) जी भैया अनित जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें