5.2.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 5 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *९२१ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है क्षपाचर -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 5 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण

  *९२१ वां* सार -संक्षेप
 1 राक्षसों का शत्रु

आइये आलस्य कुंठा और प्रदर्शन का मोह त्यागते हुए भय और भ्रम को दूर करते हुए सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने का संकल्प लेकर आनन्द को खोजने हेतु हमारा सूप जैसा स्वभाव बने

साधू ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।
सार सार को गहि रहे,थोथा देई उड़ाय ।।

यह भाव रखते हुए
 अपने जीवन को सही दिशा देने के लिए आत्मबोध की अनुभूति के साथ प्रवेश करें आज की वेला में


उठो उत्साह से उत्सव मनाओ आत्मदर्शन का,
तजो आलस्य कुण्ठा मोह दुनियाबी प्रदर्शन का,
न भय भ्रम और व्याकुलता सताए एक क्षण को भी,
मरण का भाव तजकर नित्य हो अनुभव विवर्द्धन का।

हमें विवर्धन का भाव रखना चाहिए मनुष्य के रूप में ही बार बार जन्म लेने का भाव रखते हुए हर बार आत्मोद्धार करते चलें इसलिए मनुष्य जीवन प्राप्त कर यदि हम सत्कर्म करते चलेंगे
एक दूसरे के सुख दुःख की जानकारी रखेंगे दूसरे के दुःख को दूर करने का भाव रखेंगे तो मनुष्य से विशेष मनुष्य विशिष्ट मनुष्य महामानव हो जाएंगे ऐसे हमारी मोक्ष की यात्रा परिपूर्ण हो जाती है हमारा कालुष्य दूर हो जाता है यह भी विवर्धन है


बीज से वटवृक्ष का विस्तार हूं
जगत हूं मैं जागरण का सार हूं
कर्म का संदेश जग व्यवहार हूं
 जीवन मन्त्र भाव और विचार हूं

यही मनुष्यत्व है यही मनुष्यत्व जब विस्तार पा लेता है तो राम हो जाता है राम संपूर्ण मानवत्व का विस्तार हैं इसलिए राम जो काम करते हैं जैसे उन्होंने संगठन किया वह आदर्श बन जाता है
इसलिए रामराज्य

राम राज कर सुख संपदा। बरनि न सकइ फनीस सारदा॥3॥

कहा जाता है
रामराज्य ऐसा कि

राम राज नभगेस सुनु सचराचर जग माहिं।
काल कर्म सुभाव गुन कृत दु:ख काहुहि नाहिं॥21॥

काकभुशुण्डि जी कहते हैं
हे पक्षीराज गरुड़ जी! सुनिए।

 प्रभुराम के राज्य में जड़, चेतन वाले संपूर्ण जगत् में काल, कर्म स्वभाव और गुणों से उत्पन्न हुए दुःख किसी को भी नहीं होते हैं

सब उदार सब पर उपकारी। बिप्र चरन सेवक नर नारी॥
एकनारि ब्रत रत सब झारी। ते मन बच क्रम पति हितकारी॥4॥

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कल लखनऊ के कार्यक्रम की चर्चा की
और परामर्श दिया कि अपने आश्रितों आदि में भी हम सक्रिय हों
भैया प्रवीण भागवत जी भैया विवेक भागवत जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें