रहो संगठित और सदा संन्नद्ध रहो ,
मितभाषी रहकर अनुशासबद्ध रहो ,त्याग निराशा कुंठा शौर्य प्रबुद्ध रहो,
शक्ति उपासन सहित भाव से शुद्ध रहो ।
-ओम शंकर
प्रस्तुत है अघायुस् -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 6 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९२२ वां* सार -संक्षेप
1 गर्हित जीवन बिताने वाले का शत्रु
दुष्टों से संघर्ष बहुत समय से चल रहा है वैचारिक संघर्ष हो या व्यावहारिक संघर्ष हो हम लोग जी रहे हैं इसी संघर्ष में हमें अपने कर्तव्य का बोध करना है इसी कर्तव्य बोध के लिए आइये प्रवेश करें आज की सदाचार वेला में
सदाचार का अर्थ है सत् का आचरण
स्वयं सदाचार का पालन करते हुए नित्य आचार्य जी हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है
हमें लक्ष्य करके उत्साहित प्रेरित करने का यह कार्य अप्रतिम है
सदाचार वेलाओं के माध्यम से प्राप्त विचारों को यदि हम व्यवहार में लाते हैं तो गर्हित जीवन बिताने से बच जाते हैं
श्री रामचरित मानस एक अद्भुत लाभकारी ग्रंथ है गृहस्थ आश्रमी को इसका भावपूर्वक पाठ अवश्य करना चाहिए और व्यवहार में लाना चाहिए भाव का संसार अत्यन्त विलक्षण है
हमारे भीतर यदि राम प्रवेश नहीं करते तो हम अभागे हैं मानस में ज्ञान भक्ति,वैराग्य, चिन्तन, मनन, समाज,आदर्श व्यवहार, संगठन,संघर्ष,शौर्य प्रमंडित अध्यात्म, कर्तव्य आदि बहुत कुछ है इसका विशेष रस तो ज्ञानातीत है राम - तत्त्व अवर्णनीय है
राम चरित जे सुनत अघाहीं। रस बिसेष जाना तिन्ह नाहीं॥
जीवनमुक्त महामुनि जेऊ। हरि गुन सुनहिं निरंतर तेऊ॥1॥
इसमें प्रचुर मात्रा में गृहस्थ आश्रम से परिपूर्ण अयोध्या कांड अद्भुत है
इसी अयोध्या कांड से
जब तें रामु ब्याहि घर आए। नित नव मंगल मोद बधाए॥
भुवन चारिदस भूधर भारी। सुकृत मेघ बरषहिं सुख बारी॥1॥
जब से प्रभु राम विवाह करके घर आए हैं , तब से नित्य नए मंगल हो रहे हैं और आनन्द के बधावे बज रहे हैं। चौदहों लोक रूपी बड़े भारी पर्वतों पर पुण्य रूपी बादल सुख रूपी पानी बरसा रहे हैं
सुनत राम अभिषेक सुहावा। बाज गहागह अवध बधावा॥
राम सीय तन सगुन जनाए। फरकहिं मंगल अंग सुहाए॥2॥
सब अच्छा ही अच्छा हो रहा है आनन्द ही आनन्द है लेकिन
करम गति टारै नाहिं टरी॥
मुनि वसिस्थ से पण्डित ज्ञानी, सिधि के लगन धरि।
सीता हरन मरन दसरथ को, बन में बिपति परी॥1॥
कहँ वह फन्द कहाँ वह पारधि, कहँ वह मिरग चरी।
कोटि गाय नित पुन्य करत नृग, गिरगिट-जोन परि॥2॥
पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर बिपति परी।
कहत कबीर सुनो भै साधो, होने होके रही॥3॥
इस करम को भाग्य कहा है इस भाग्य को परमात्माश्रित मनुष्य बांचता हैं
प्रान कंठगत भयउ भुआलू।
मनि बिहीन जनु ब्याकुल ब्यालू।।
कौशल्या धीरज बंधाती हैं यह आदर्श परिवार का लक्षण है दशरथ को धीरज बंधा रही हैं
ऐसा ही आदर्श परिवार युगभारती है जो भारत की सेवा और साधना में अपने को आहूत करने वाले मां भारती के सपूत दीनदयाल उपाध्याय की साधना का एक प्रतिफल है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया अजय शंकर जी का नाम क्यों लिया शिशु भारती बाल भारती तरुण भारती आदि के विषय में क्या बताया उन्नीस बच्चों का उल्लेख क्यों हुआ श्री गयाप्रसाद जी से संबन्धित क्या बात आई जानने के लिए सुनें