7.2.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 7 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण *९२३ वां* सार -संक्षेप

 सुंदरता की मृगतृष्णा में


पथ भूल न जाना पथिक कहीं!

मधुवेला की मादकता से

कितने ही मन उन्मन होंगे

पलकों के अंचल में लिपटे

अलसाए से लोचन होंगे

नयनों की सुघड़ सरलता में

पथ भूल न जाना पथिक कहीं!


प्रस्तुत है अघशंस -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 7 फरवरी 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९२३ वां* सार -संक्षेप
1=दुष्टों का शत्रु

हम कौन हैं हमें कहां जाना है हमारे कर्तव्य क्या क्या हैं भारतीय जीवन दर्शन के मूल आधार इस पथ को न भूलते हुए परमपिता परमेश्वर और अपने महान पूर्वजों का स्मरण कर सदाचारमय विचारों को ग्रहण करने का संकल्प लेकर अपने राष्ट्र के लिए जाग्रत रहते हुए और यह भाव मन में रखकर कि सद् विचार हमारे कर्म और व्यवहार में परिलक्षित हों बुद्धि की जड़ता शेष न रहे आइये प्रवेश करें आज की वेला में

गार्हस्थ परिस्थितियों से बाहर निकल कर आदर्श जीवन प्रस्तुत करने वाले ,सारी मर्यादाओं का परिपालन करने वाले कर्म और धर्म के सामञ्जस्य को आश्चर्यजनक रूप में प्रस्तुत करने वाले लोभ लालच से मुक्त पुरुषों में उत्तम सतत संतुष्ट प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम से प्रेरणा लेकर समस्याओं से संसार को मुक्त करने के लिए हमें परमात्माश्रित होकर संसार के लिए उपयोगी शक्ति सामर्थ्य बुद्धि विवेक का संवर्धन करना चाहिए

शक्ति इसलिए आवश्यक है क्योंकि अशक्त शरीर में विचार सुस्थिर नहीं रहते ज्ञान दूर भागता है

ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्। तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः मा गृधः कस्यस्विद्धनम्॥


इस सतत गतिशील जगत् में सब कुछ ईश्वर के आवास के लिए है। इनका त्यागपूर्वक उपभोग करना चाहिए किसी भी दूसरे की धन-सम्पत्ति पर ललचाई दृष्टि नहीं डालनी चाहिए

कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥

इस संसार में कर्म करते हुए ही मनुष्य को सौ वर्ष जीने की इच्छा करनी चाहिए,इसके विपरीत नहीं इस प्रकार कर्म करते हुए ही जीने की इच्छा करने से मनुष्य में कर्म का लेप नहीं होता है

हमारा भाव यह रहा है कि
अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् | उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् |

लेकिन एकांगी चिन्तन से हमें बहुत नुकसान हुआ इसलिए हमें शौर्य प्रमंडित अध्यात्म को ही अपनाना चाहिए भौतिक शक्ति आवश्यक है तो आध्यात्मिक शक्ति भी आवश्यक है सारी शक्तियों का सामञ्जस्य हमारे अन्दर होना चाहिए गीता मानस का अध्ययन करें चिन्तन मनन अध्ययन स्वाध्याय लेखन ध्यान धारणा लाभकारी हैं हम नित्य नैमित्तिक और परम धर्म को जानें
हमें भ्रम भय से दूर रहना चाहिए छल और धोखे से सचेत रहना भी पुरुषार्थ है

हिंदु युवकों आज का युग धर्म शक्ति उपासना है ॥

बस बहुत अब हो चुकी है शांति की चर्चा यहाँ पर
हो चुकी अति ही अहिंसा सत्य की चर्चा यहाँ पर
ये मधुर सिद्धान्त रक्षा देश की पर कर ना पाए
ऐतिहासिक सत्य है यह सत्य अब पहचानना है ॥

हम चले थे विश्व भर को प्रेम का संदेश देने
किंतु जिन को बंधु समझा आ गया वह प्राण लेने
शक्ति की हम ने उपेक्षा की इसीका दंड पाया
यह प्रकृति का ही नियम है अब हमे यह जानना है ॥

इसके अतिरिक्त आचार्य ने परामर्श दिया कि हम प्रश्न भी करें ताकि विषय सुस्पष्ट हो सकें
आचार्य जी ने आज की वेला में और क्या कहा जानने के लिए सुनें