19.3.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 19 मार्च 2024 का सदाचार संप्रेषण *९६४ वां* सार -संक्षेप

 


अंबर का संदेश मौन धरती अशान्त है
दिशा दिशा में प्रश्नचिह्न मानस उदास है
संयम के तटबंध टूट कर छितर गए हैं
लगता है यह पूरा अगजग ही हताश है..
लेकिन हम किसी भी परिस्थिति में बिल्कुल भी हताश न हों सकारात्मक सोच रखें यह सकारात्मक सोच कैसे बनी रहे इसके लिए प्रवेश करें सदाचारमय विचारों की शृङ्खला की आज की कड़ी में

प्रस्तुत है पारदृश्वन् ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 19 मार्च 2024 का सदाचार संप्रेषण
  *९६४ वां* सार -संक्षेप
1 दूरदर्शी


दूरदर्शिता अद्भुत है जब तत्त्ववेत्ता जीवन के यथार्थ का दर्शन कर लेते हैं तो अत्यधिक आनन्द का अनुभव करते हैं इसी आनन्द की खोज में हम प्रकृति की लीला के सहकर्मी भी सतत यात्रा करना चाहते हैं और हम भारतीयों की वृत्ति ऐसी रहती है कि जो आनन्द हमें मिले वही आनन्द सभी को मिले
इसलिए विभु की कल्पना को सदैव मन में धारण करते हुए हम कहते हैं

सर्वे भवन्तु सुखिनः ।
 सर्वे सन्तु निरामयाः ।
 सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।
मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥

मैं तत्व शक्ति विश्वास, समस्याओं का निश्चित समाधान
मैं जीवन हूं मानवजीवन मैं सृजन -विसर्जन- उपादान

यथार्थ, आदर्श,चिन्तन, मनन से उपजी भावों की इन सरणियों से अधिक से अधिक ग्रहण करने की भावना हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी है
हमारा लक्ष्य है
राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
राष्ट्र के प्रति जाग्रत रहने की भावना के साथ हम अपने संगठन को सुदृढ़ बनाते रहें
दैनन्दिनी- लेखन अत्यन्त लाभकारी होता है हमारे मन में जो कुछ आये उसे अंकित अवश्य करें
आत्मचिन्तन और आत्मदर्शन को व्यक्त करती दैनन्दिनी -लेखन नामक विधा लेखन की एक अद्भुत विधा है
अपने कर्तव्य कर्म का निर्वाह सत्यनिष्ठा के साथ करें
प्राणों का परित्याग पाप है प्राणों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है हमारे प्राणों को कष्ट न मिले इसके लिए हमें सही खानपान की ओर भी ध्यान देना है
प्राण परिरक्षण के बाद अपने परिवेश अपने पर्यावरण का परिरक्षण भी मनुष्य का कर्म है धर्म है और जीवन का मर्म है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने १२ जुलाई २०१४ को लिखी अपनी एक कविता सुनाई

अभिनन्दन वन्दन के मैं तो योग्य नहीं था
जाने क्यों तुमने अपनी श्रद्धा उड़ेल दी..

और आचार्य जी ने एक प्रेरक आख्यान की चर्चा की जिसमें एक संत ने झूठे उड़द खाने किन्तु झूठा पानी न पीने का रहस्य खोला
वह रहस्य क्या था और आचार्य जी ने किसके लिए कहा कि वह शिष्य के नाम से पहचाना जाए जानने के लिए सुनें