प्रस्तुत है आचारपूत ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 20 मार्च 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९६५ वां* सार -संक्षेप1 शुद्धाचारी
हम अर्जुनों को कर्तव्यबोध, जिसमें भावी पीढ़ी को साम गान की तान सुनाना भी सम्मिलित है,की अनुभूति कराने वाले,विभूति शक्ति कान्ति प्रदान करने वाले,परमात्मतत्व की अनुभूति कराने वाले,पीड़ाओं में समाधान सुझाने वाले,गीता गंगा गोमाता गायत्री का मान बढ़ाने वाले, बिना लक्ष्मी से बाध्य हुई सरस्वती मैया की पावनता दर्शाने वाले,हम जवानों को अपनी जवानी (जो परमात्मा का वरदान है) याद दिलाने वाले,हमारे शौर्य पराक्रम को उत्थित कराने वाले,हर घर को देवालय बनाने में सक्षम ये अत्यन्त सफल सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं
गीता में अनन्त शक्ति सम्पन्न भगवान् कृष्ण कह रहे हैं
यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम्।।10.41।।
कोई भी विभूति से युक्त, कान्ति से युक्त, शक्ति से युक्त वस्तु या प्राणी मेरे तेज के अंश से ही उत्पन्न हुआ है
जैसे
पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी।।10.31।।
मनुष्यत्व की अनुभूति हमें आनन्द प्रदान करती है भगवान् ने हमें बहुत से भाव प्रदान किये हैं
बुद्धिर्ज्ञानमसंमोहः क्षमा सत्यं दमः शमः।
सुखं दुःखं भवोऽभावो भयं चाभयमेव च।।10.4।।
अहिंसा समता तुष्टिस्तपो दानं यशोऽयशः।
भवन्ति भावा भूतानां मत्त एव पृथग्विधाः।।10.5।।
बुद्धि, ज्ञान, मोह का अभाव, क्षमा, सत्य, इन्द्रियों का संयम, मन का संयम, सुख, दु:ख, जन्म, मृत्यु, भय, अभय,
अहिंसा, समता, सन्तोष, तप, दान. यश और अपयश आदि नाना प्रकार के भाव मुझ से ही प्रकट होते हैं
४ अप्रैल २०१३ को लिखी आचार्य जी की यह कविता उस समय की राजनैतिक सामाजिक स्थिति का वर्णन कर रही है
कब सब सुखी निरोगी होंगे वसुधा कब कुलवान् बनेगी
बोलो मेरे देश तुम्हें फिर कब अपनी पहचान मिलेगी...
एक और कविता
जब जंजाल गले तक आकर झूल रहा हो
काला रंग हर दर पर उग फल फूल रहा हो..
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि दैनन्दिनी लिखते रहें और अपने अंदर आये परिवर्तन को देखते रहें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने वीर कुंवर सिंह का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें