हमें कमल की तरह रहते हुए जल से अपने अनुकूल रस खींचना है लेकिन जल में लिप्त नहीं होना है....
प्रस्तुत है स्निग्धजन ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 22 मार्च 2024 का सदाचार संप्रेषण
*९६७ वां* सार -संक्षेप
1 स्नेही व्यक्ति
हम सद्गुणी बनें, भय भ्रम हमसे दूर रहें,हम कर्म करें लेकिन फल की इच्छा न करें इसके लिए आचार्य जी नित्य प्रयास करते हैं हमें इसका महत्त्व समझना चाहिए
सांसारिक समस्याओं के उपयुक्त समाधान सुझाने वाले,हमारे शौर्य पराक्रम को उत्थित करने वाले,हमें चिन्तन मनन निदिध्यासन अध्ययन स्वाध्याय लेखन की ओर उन्मुख करने वाले, हमें राष्ट्र-निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्ति बनाने वाले हम अपना मूल्यांकन करते रहें इसके लिए हमें सचेत करने वाले ये सदाचारमय विचार अद्भुत हैं
शौर्यप्रमंडित अध्यात्म का मात्र चिन्तन नहीं अपितु उसका आचरण व्यवहार आवश्यक है उस अध्यात्म, जो शौर्य से प्रमंडित हो, का प्रभाव ऐसा कि जहां हम हैं वहां हमारी आंच लगनी चाहिए और ऐसे आचरण करने वाले लोगों का हम संगठन बनाएं हम अपना एक इष्ट अवश्य बनाएं क्योंकि वही हमें राह दिखाता है एकांगी अध्यात्म व्यर्थ है
हमें भजनानन्दी नहीं बनना है
अपने लक्ष्य की ओर सदैव ध्यान रखें हमें स्मरण रहना चाहिए कि हम राष्ट्र के लिए जाग्रत पुरोहित हैं
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोऽहम्।
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रम्
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्॥३॥
राष्ट्र को परम वैभव पर पहुंचाने का अर्थ है कि यह राष्ट्र संपूर्ण विश्व को आर्य बनाने की क्षमता रखने वाला राष्ट्र हो जाए
हम आत्मबोध करें हम अनुभूति करें कि हम राष्ट्र के अंग हैं हमें राष्ट्र -हित के कार्य करते चलना है खानपान पर भी ध्यान रखें सोसायटी के कारण कुछ भी उल्टा सीधा खाने पीने से बचें
विलायती चिन्तन को अपने ऊपर हावी न होने दें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने परामर्श दिया कि भारतीय जनसंघ की स्थापना किन परिस्थितियों में हुई हमें जानना चाहिए
राजनीति स्नानागार की तरह है किसने कहा स्वार्थ परमार्थ कब होता है श्यामाप्रसाद मुखर्जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सु