23.3.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का फाल्गुन शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 23 मार्च 2024 का सदाचार संप्रेषण *९६८ वां* सार -संक्षेप

 बाढ़े खल बहु चोर जुआरा। जे लंपट परधन परदारा॥

मानहिं मातु पिता नहिं देवा। साधुन्ह सन करवावहिं सेवा॥

जिन्ह के यह आचरन भवानी। ते जानेहु निसिचर सब प्रानी॥


प्रस्तुत है सन्ध्याबल -रिपु ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज फाल्गुन शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 23 मार्च 2024 का सदाचार संप्रेषण
  *९६८ वां* सार -संक्षेप
1 राक्षसों का शत्रु

राक्षस अपने सुख के लिए, स्वार्थ के लिए शक्ति का संवर्धन करते हैं
जैसे रावण

भुजबल बिस्व बस्य करि राखेसि कोउ न सुतंत्र।
मंडलीक मनि रावन राज करइ निज मंत्र॥ 182(क)॥


बरनि न जाइ अनीति घोर निसाचर जो करहिं।
हिंसा पर अति प्रीति तिन्ह के पापहि कवनि मिति॥ 183॥


  घोर अत्याचार करने वाले राक्षसों के कृत्यों का वर्णन नहीं किया जा सकता। जिनकी हिंसा पर ही प्रीति हो उनके पापों का क्या ठिकाना
पाप सिर चढ़कर बोलता है
इन्हीं राक्षसों के कारण गुन दोषमय संसार में अशान्ति बृहद् रूप में है और शान्ति संक्षिप्त रूप में है सत्य मूल रूप में और असत्य पल्लवित होता हुआ विस्तृत रूप में दिखाई देता है

ऐसे में अध्यात्म महत्त्वपूर्ण हो जाता है उसका अर्थ जागृति है विरक्ति कदापि नहीं
अध्यात्म का अर्थ गहन दूरदृष्टि है इसके अर्थ में शक्ति शौर्य पराक्रम के साथ दैहिक दैविक भौतिक शान्ति का उपदेश उसकी अनुभूति और उसकी अवधारणा है
प्रातःस्मरण में हम कहते हैं

ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी
भानुः शशीभूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवः
कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥३

तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु (राक्षस मुरा का अरि ) एवं महेश (त्रिपुरासुर को समाप्त करने वाले) तथा सूर्य , चंद्रमा, भूमि- पुत्र मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु मेरे प्रभात को शुभ एवं मंगलमय करें
चिन्तनपरक लोग शक्ति का संवर्धन अनीति का दमन करने के लिए करते हैं

अतिसय देखि धर्म कै ग्लानी। परम सभीत धरा अकुलानी॥2॥

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्।।4.7।।

तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि
 सज्जन पीरा l

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने
भरद्वाज सुनु जाहि जब होई बिधाता बाम।
धूरि मेरुसम जनक जम ताहि ब्यालसम दाम॥१७५
जिसका अर्थ इस प्रकार है
याज्ञवल्क्य - हे भरद्वाज! सुनो, जब विधाता जिसके विपरीत होते हैं, तब उसके लिए धूल सुमेरु पर्वत के समान अत्यन्त वजन वाली , पिता यम की तरह कालरूप और रस्सी सर्प के समान कटखनी हो जाती है
का उल्लेख क्यों किया भैया सुनील जैन भैया शशि जी का नाम क्यों लिया मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल के विषय में क्या कहा जानने के लिए सुनें