देशभक्ति दायित्व-बोध सत्कर्म यही है,
मानव-जीवन का सचमुच में मर्म यही है,
कि, जो जिस जगह और जिस पद हद रूप नाम में,
आंख खोल संयम निष्ठा से लगे काम में ।।
✍️ओम शंकर
प्रस्तुत है अपभी ¹ आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज चैत्र कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८० तदनुसार 27 मार्च 2024 का सदाचार संप्रेषण
९७२ वां सार -संक्षेप
1 निडर
इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर इनसे लाभान्वित होकर हम अपने जीवन में क्या करते हैं यह महत्त्वपूर्ण है हम व्यस्त रहें लेकिन उसमें अस्तव्यस्तता न हो व्यस्तता ऐसी हो कि जो कार्यव्यवहार करें उसमें आनन्द की प्राप्ति हो रही हो और अच्छा परिणाम भी प्राप्त हो रहा हो परमात्मा सर्वाधिक व्यस्त रहता है और इसी कारण वह आनन्दपूर्वक सृष्टि का संचालन करता रहता है उसे कोई उलझन नहीं रहती
अनगिनत रूप इस जीवन के क्रमवार बताना मुश्किल है
दीपक जैसी यह ज्योत टिमकती जलती रहती तिल तिल है
तिल तिल जलकर प्रकाश देते रहना ही इसका लक्षण है
मानव जीवन सचमुच में अद्भुत अनुपम और विलक्षण है
मानव जीवन विलक्षण और अद्भुत है लेकिन इसकी जब हमें अनुभूति हो तब
परमात्मा से यही प्रार्थना करनी चाहिए कि इस जीवन का आनन्द हमें प्राप्त हो
हमें अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए लेकिन असंतुष्ट रहते हुए
असंतुष्टता ही हमें और अधिक ज्ञान बटोरने के लिए प्रेरित करेगी
हमें अपनी प्राचीन गौरव गाथा को जानने का हर प्रकार का प्रयास करना चाहिए
इसके लिए आचार्य जी ने परामर्श दिया कि हम सुरुचि प्रकाशन के पञ्चाङ्ग को क्रय कर लें उसे भलीभांति पढ़ें भी और अन्य लोगों को भी प्रेरित करें
हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी
आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी
भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां
फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां
संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है
नाम रूप व्यवहार सामञ्जस्य भाषा वाणी में चिन्तन अवश्य करें अन्यथा जीवन सारहीन हो जाएगा ऐसा बोलिए जिसका असर हो और जिससे लोग आहत न हों
हमारे अन्दर जो हीनभाव आ गया है उसे दूर करें हमें अपनी भाषा भूषा आदि पर गर्व करना चाहिए और संसार हमारी प्रशंसा करे
हमारे देश में सादगी संयम स्वाध्याय तप त्याग सेवा शौर्य का प्रचार होता है राष्ट्रहित में साधना करने का प्रचार होता है ऐसी है हमारी संस्कृति
अंग्रेज संकल्पबद्ध थे तभी अंग्रेजी भाषा पूरे संसार में व्याप्त हो गई
क्या हम अपनी भाषा के लिए संकल्पबद्ध नहीं हो सकते? अवश्य हो सकते हैं भाषाई संयम भी आवश्यक है
इसके अतिरिक्त Happy Lushera क्या है कल वर्षफल कहां हुआ आचार्य जी ने भैया अभय गुप्त जी भैया शीलेन्द्र जी भैया विजय गुप्त जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें